कृष्ण भजन
माखन चुराते हो, कान्हा दिल चुराते हो
बंसी बजाकर के, मेरी सुधबुध चुराते हो
मेरी नींद चुराते हो, मेरा चैन चुराते हो
नैन मिलाकर के मेरा दिनरैन चुराते हो
माखन चुराते हो, कान्हा दिल चुराते हो
बंसी बजाकर के मेरी सुधबुध चुराते हो
मेरा डर चुराते
हो, मेरा क्रोध चुराते हो
प्रेम जगा करके, मेरा हरगम चुराते हो
अभिमान चुराते हो,मेरा अज्ञान चुराते हो
पल भर में मेरे पापों, को कान्हा चुराते हो
माखन चुराते हो, कान्हा दिल चुराते हो
बंसी बजाकर के मेरी सुधबुध चुराते हो
अभी चोरी की है तो, सजा सुननी पड़ेगी
मेरे दिल की जेल में, अब ये बेडी पड़ेगी
मेरे दिल की जेल से रिहाई हो नहीं पाएगी
मेरे अंत समय में ही ये बेडी खुल पाएगी
माखन चुराते हो, कान्हा दिल चुराते हो
बंसी बजाकर के मेरी सुधबुध चुराते हो
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