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वो भी क्या ज़माना था - poem recited by RJ on Radio Olive

वो भी क्या ज़माना था वो भी क्या ज़माना था जब हवाईजहाज उडाया करते थे, पानी में नाव तैराते थे और साईकिल दौडाया करते थे। वो भी क्या ज़माना था जब हवाईजहाज उडाया करते थे, सपनो को बंद कर आँखों में ,चाँद से बातें करते थे। फोल्डिंग पलंग पर तारों संग रात सजाया करते थे। वो भी क्या ज़माना था जब हवाईजहाज उडाया करते थे, जेबों में मूँगफली, उँगली में फ्रायमस पहना करते थे आइसक्रीम,पोपकोर्न के लिए सडकों पर दौड़ लगाया करते थे। वो भी क्या ज़माना था जब हवाईजहाज उडाया करते थे, दादी के संग अंगीठी पर भुट्टे भूना करते थे, बीज निखोला करते थे और जवे तुड़वाया करते थे । सिल पर चटनी और रई से मक्खन बिलोया करते थे, वो भी क्या ज़माना था जब हवाईजहाज उडाया करते थे, अपनी पोकेटमनी से गानो की कैसेट लाया करते थे, दोस्तो के संग फिर कैसेट की अदला बदली करते थे, जब कैसेट अटक जाती तो पेंसिल से घुमाया करते थे। वो भी क्या ज़माना था जब हवाईजहाज उडाया करते थे, गरमी में बोतल और कूलर में, पानी भरते रहते थे, सरदी में टोपे और जैकेट पहन, बाइक पर सैर करते थे, और रिमझिम रिमझिम बारिश होते ही पकौडे खाया करते थे। वो भी क्या ज़माना था जब हवाई...

सबसे ज्यादा खुशी का लम्हा

सबसे ज्यादा खुशी का लम्हा कैसे बताएँ कब था। बीत गया जो देकर खुशियाँ हर पल वो अज़ीज़ था।। वो पल जब "मेरी गुडिया" कहकर दादी बाबा ने, मुझे पहली बार चूमा था। या वो पल जब पापा ने गोदी में उठाकर मुझे गली गली घुमाया था, शायद तब जब मम्मी ने मुझे फ्रिल वाली फ्रोक पहनाकर परियों सा सजाया था। या तब जब भइया ने साइकिल में धक्का लगाया था और मेरे गिरने पर मुझे रोते से हँसाया था। या जब मेरी छोटी बहन ने मेरी हर शैतानी व परेशानी में मेरा साथ निभाया था। वो लम्हा भी प्यारा था जब टीचर ने मुझे सबसे अच्छे बच्चे का खिताब पहनाया था। किस खुशी के पल को भूलूँ ,किस किस पल को मैं याद करूँ, वो लम्हे कैसे भूलूँ जब सखियों के प्यार के अफसानो का हँस हँस कर मजाक बनाया था। या तब जब उनके नैन से हमारा पहली बार नैन टकराया था। या तब जब पहली बार उन्होने अपने हाथो से मुझे खाना बनाकर खिलाया था। शायद तब जब मैने अपने सास ससुर में दादी बाबा सा प्यार पाया था। वो लम्हा भी यादगार था जब डाक्टर ने पहली बार पैर भारी होना बताया था। या वो लम्हा सब से प्यारा था जब मेरे नन्हों की किलकारी ने मेरी बगिया को चहकाया था। और उनकी हर नई अदा...

कुछ पुराने नगमे 'बिन मुरली वाला'

कुछ पुराने नगमे सोलह साल की उम्र में अक्सर, हर लडकी माँगती है एक दुआ भगवान से। शायद मैने भी माँगी थी एक दुआ, अपने कॄष्णा के  गोवर्धन  गाँव में। गिरिराज की परिक्रमा लगाते हुए, पर्वत पर श्रद्धा से जल चढाते हुए। एक कामना की थी   बचपन में, एक प्यारे से वर की। जो मुझे दे सके बेइंतहा प्यार, क्यो माँगा था कब माँगा था, भूल गई थी मै बचपन की वो याद, पर शायद सुन ली  मेरी वो फरियाद। और आज मिल गया मुझे कॄष्णा का  पैगाम, दे दिया उन्होने मुझे अपना ही एक नाम । जिसे सुनकर याद आ गया मुझे मेरा, वो मासूम अनजाना बचपन का वो पल, जब मैने अनजाने में ही माँग लिया था मेरा वो साँवला सा  सैया  , बिन मुरली वाला  कन्हैया ।। -शालिनी गर्ग

कैसे भूलू मैं अपना प्यारा हिन्दुस्तान

कैसे भूलू मैं अपना प्यारा हिन्दुस्तान हिमालय है जिसकी आन, गंगा यमुना है जिसकी शान, और हम सब में बोलती हिन्दी भाषा है जिसकी जान, कैसे भूलू मैं अपना प्यारा हिन्दुस्तान । वो बारिश में भीगे, फूलों की खुशबू से महके, ठंडी हवा के झोखों में जहाँ, गूंजे शिवा का नाम । कैसे भूलू मैं अपना प्यारा हिन्दुस्तान । कभी भैया से झगडा, कभी बहना से तकरार, कभी मम्मी पापा का लाड़ और दुलार, और हाँ कभी कभी सासु माँ के तानो की तान, कैसे भूलू मैं अपना प्यारा हिन्दुस्तान । वो हाथों में भरी भरी काँच की चूडियाँ, बालों मे गजरा,माथे पे बिन्दया, पैरो में बजता पायल का छनछान, कैसे भूलू मैं अपना प्यारा हिन्दुस्तान । मम्मी के हाथों की मक्का की रोटी, दादी के लड्डू मठरी और अचार, और नानी का मीठा गुलकंद का पान, कैसे भूलू मैं अपना प्यारा हिन्दुस्तान । वो शादी की मस्ती ,त्योहारों के खान, सखियों संग ठिठोली, चाय के जाम, उस पे बिना खबर के मेहमानो का आन, कैसे भूलू मैं अपना प्यारा हिन्दुस्तान । -शालिनी गर्ग