कहानी 17: वास्तविक कर्ता कौन?
(दृश्य – बगीचे में राहुल और दादाजी टहल रहे
हैं)
राहुल (खुश होकर दौड़ते हुए):
दादाजी! देखिए देखिए… मैंने आम की गुठली क्यारी में डाली थी,
वहाँ से एक नन्हा पौधा निकल आया! कितना सुंदर लग रहा है ना!
दादाजी (मुस्कुराते हुए झुकते हैं): हाँ बेटा, इसे पपीहा
कहते हैं।
राहुल (हैरान होकर): पपीहा? पपीहा तो पक्षी होता है ना?
दादाजी (मुस्कुराते हुए): हाँ बेटा, होता तो पक्षी है , हम तो इसको पपीहा ही
कहते थे जब हम छोटे थे, हम इसे सावधानी
से उखाड़कर इसका एक सिरा थोडा घिसकर उसमें फूँक मारकर उससे सीटी जैसी आवाज़ निकालते
थे। जैसे बाजा हो! शायद इसलिए हम इसे पपीहा कहते होंगे।
राहुल : दादाजी, आप भी बजाते थे?
दादाजी (हँसकर): हाँ हाँ, उस समय न मोबाइल था, न टीवी... तो ऐसे ही कभी पपीहा बजाते ,
कभी नीम की निंबोली खाते, कभी नीम की दातुन करते और पेडों की शाओं
पर झूलते थे, शरारते करते
रहते थे — ये सब हमारे खिलौने होते थे।
ऐसा करने से मजा तो आता ही था सीखने को भी बहुत कुछ मिलता था ।
राहुल दादाजी चोट
भी तो लगती होगी । मैं तो ये सब शैतानी करने की
सोच भी नही सकता।
दादाजी (हँसते हुए): चोट खाकर ही तो मजबूत बनते हैं । तुम्हारी शरारते तो मोबाइल ने खत्म कर
दी हैं।
राहुल: लेकिन दादाजी मैने और मम्मी ने तो इसमें पानी भी नही
डाला, न इसका ध्यान रखा फिर ये पौधा कैसे आ गया ।
दादाजी: बेटे बरसात हुई थी तो इसे वो
पानी मिल गया, सूरज तो समय पर आता ही है । बस तुमने मिट्टी में डाला मिट्टी मिल
गई और क्या चाहिये इसे जो जरूरी था सब मिल गया।
राहुल (गर्व से
छाती फुलाकर): तो दादाजी, मैंने गुठली डाली और पौधा निकल आया – देखो मेरा कमाल।
दादाजी (धीरे से मुस्कुरा कर): लेकिन यह सिर्फ तुम्हारा कमाल नहीं
है बेटा, यह प्रकृति का कमाल है।
राहुल (थोड़ा उलझा हुआ): मतलब?
दादाजी (धीरे-धीरे समझाते हैं): देखो बेटा, तुमने बीज
डाला, लेकिन क्या तुमने उसे फोड़ा? क्या
तुमने उसमें से अंकुर निकलवाया? क्या तुमने उसे बड़ा किया?
राहुल (सोचते हुए):नहीं… वो तो अपने आप हुआ।
दादाजी (स्नेह से): बेटा हमेशा याद रखो, जब भी हम कोई काम करते हैं , हमारा उसमें बहुत छोटा
सा योगदान होता है। बाकी सब तो प्रकृति का चमत्कार होता है।
राहुल: ओह! तो असल
में काम प्रकृति करती है?
दादाजी: यही बात तो भगवान श्रीकृष्ण गीता के इस श्लोक में समझाते हैं —
"प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि
सर्वशः।
अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते।।" (गीता 3.27)
अर्थात्, प्रकृति
के गुण ही हम से सभी कार्य कराते हैं, लेकिन अहंकार में
डूबा हुआ मनुष्य सोचता है, "मैं ही करता हूँ!"
राहुल: तो
दादाजी, जब हम कोई कार्य करते हैं तो उसको प्रकृति करती है हम नहीं करते
?
दादाजी: हाँ बेटा केवल थोडा सा हिस्सा, बहुत थोडा सा पार्ट हम करते है
हम तो सिर्फ एक निमित्त
होते हैं?
जैसे बीज तुमने
डाला, लेकिन सूरज, पानी, मिट्टी, हवा — सबने
मिलकर उसे बड़ा किया। उसी तरह हमारे सारे काम में भी अनगिनत चीज़ें मदद करती हैं।
राहुल: दादाजी
और दूसरे उदाहरण से समझाइए ना
दादाजी: बादल बनते हैं कैसे समुंदर की
भाप से — कौन बनाता है
राहुल: दादाजी अपने
आप।
दादाजी: फिर बारिश होती है वो कैसे कौन करता है
राहुल: — ये भी अपने आप।
दादाजी: हम खाना खाते हैं, पर खाने का पाचन और शरीर का पोषण—कौन करता है ?
राहुल (आँखें फैलाकर): ये सब अपने आप होता है । दादाजी
सच में सोचो तो ये सब जादू जैसा है ना ये सब अपने आप होता रहता है
दादाजी: हाँ बेटा, अपने आप मतलब प्रकृति के द्वारा होता है ।
राहुल :और दादाजी
प्रकृति कैसे काम करती है इसको कौन शक्ति
देता है ?
दादाजी : भगवान, प्रकृति को शक्ति भगवान देते हैं और वो
अपना काम करती है पर हमको लगता है ये काम अपने आप हो रहा है । हम कभी सोचते भी
नहीं है ! कितनी अद्भुत है ये सृष्टि! और हम छोटा सा काम करके सोचते हैं कि ये सब काम
हमने किया है ।
राहुल : दादाजी घर तो हम बनाते हैं ना, घर तो आपकी प्रकृति
नहीं बनाती ।
दादाजी : अगर हमें
घर बनाना है तो हमें पहले कितनी सारी चीजे इकट्ठी करनी होती हैं उन सबको जोडकर घर बनाते है पर जो भी बेसिक चीजे होती हैं लकडी,
धातु मतलब मैटल, ईंटो के लिये पत्थर ,मिट्टी सब प्रकृति से ही तो मिलता है । सब प्रकृति की मदद से ही हम बनाते हैं। प्रकृति
की मदद के बिना कुछ भी नही हो सकता।
राहुल: हाँ दादाजी हम खाना बनाते है तो सब समान भी पानी
अन्न सब्जी प्रकृति से ही आता है।
दादाजी : एक और बात बेटा हमारे अंदर भी प्रकृति के तीन गुण होते
हैं ।
हम जो भी काम करते
हैं उसकी प्रेरणा हमें हमारी प्रकृति के तीन गुण देते है ।
राहुल :हमारी
प्रकृति के तीन गुण ये क्या है? दादा जी!
दादाजी : बेटा हम
सबके अंदर प्रकृति के तीन गुण होते हैं ये कहलाते हैं सतोगुण रजोगुण और
तमोगुण
सतोगुण को मोड ओफ गुडनैस
Mode of Goodness
रजोगुण को मोड ओफ पैशन
Mode of Passion
तमोगुण को मोड ओफ इगनोरैंस Mode of Ignorance भी कहा जाता है
राहुल (जिज्ञासा से): क्या ये हमारे अंदर होते हैं? क्या करते हैं ये तीनो
दादाजी ?
दादाजी: जब हमारे
अंदर सतोगुण होता है, तो
हमारा मन शांत रहता है। हम बुद्धि से विवेक
से, हम सही-गलत को समझते हैं, बुरे काम
करने से बचते हैं,और सही काम करते हैं।
यह गुण हमें अंदर से संतुष्टि देता है।
राहुल: वाह दादाजी
ये तो बहुत समझदार गुण है?
दादाजी: हाँ बेटा तभी तो इसका नाम सतो गुण मोड ओफ गुडनैस
है।
अब सुनो रजोगुण की बात...
जब हमारे अंदर रजोगुण गुण होता है तो हमारी इच्छाएँ बढ़ती हैं — हमें
काम करना तो अच्छा लगता है दिन-रात मेहनत भी करते हैं क्योंकि पैसा,
नाम, शोहरत, बढिया
वस्तुएँ सब बढिया चाहिए ।— कपड़े, फोन, गाड़ी — हर चीज़ ब्रांडेड चाहिए सबसे बेस्ट। पर इस गुण मे संतोष नहीं मिलता।
राहुल (हँसते हुए): दादाजी, ये तो हम सभी में सबसे ज्यादा ही
होता हैं ना ।
दादाजी : हाँ बेटा, ये हम सब में ज्यादा होता है ।हाँ बेटा इस
गुण के ज्यादा होने पर हम स्वार्थी और अहंकारी हो जाते हैं गुस्सा भी जल्दी आता है। जबकी सतोगुण में गुस्सा कम आता है और
स्वार्थ भी कम होता है।
राहुल: और
दादाजी तीसरा क्या बताया था आपने ?
दादाजी : तीसरा तमोगुण — ये है तम मतलब अंधकार का
गुण। अंग्रेजी में भी इसका नाम मोड ओफ इगनोरैंस है । जब
ये हावी होता है, तो व्यक्ति आलसी होजाता
है , और गलत काम करता है । अपने फायदे के लिए
दूसरे का नुकसान भी कर सकता है । आलस की वजह से काम में मन नहीं लगता, समय पर कोई
काम नही करता , अपने शरीर का भी ध्यान नहीं रखता है, ऊटपटाँग गंदा संदा खाना खा लेता है और दूसरो को परेशान भी करता है,कभी-कभी
तो जानवरों और पौधों को भी सताने लगता है।
राहुल (चौंकते हुए): अरे दादाजी! ये गुण तो बहुत गंदा है ?
दादाजी: हाँ बेटा पर ये
तमोगुण भी हम सब में होता है।
कभी हम सतोगुणी होते हैं, जब हमारा मन
शांत और सकारात्मक होता है।
कभी रजोगुणी—जब हम बहुत सक्रिय,
इच्छाओं से भरे रहते हैं।
और कभी-कभी, तमोगुणी—जब हमारी सोच गलत रास्ते पर चल पड़ती है।
राहुल: तो दादाजी, जब जिस गुण का प्रभाव होता है, हमारी बुद्धि भी वैसे ही काम करने लगती है?
दादाजी (मुस्कराते हुए): बिल्कुल सही कहा!
जिस समय जो गुण प्रभावी होता है, वह हमारे
विचारों और फैसलों पर असर डालता है।
और फिर हम उसी गुण के अनुसार काम करने लगते हैं।
राहुल: मतलब
दादाजी, सतोगुण अच्छा काम करवाता है और तमोगुण गलत?
दादाजी: हाँ बेटा, और इन गुणों पर हमारे भोजन का, संगत का, शिक्षा और माहौल का गहरा असर होता है।
राहुल (सोचते हुए): ओह! इसलिए तो कहते हैं कि अच्छा खाना, अच्छी शिक्षा और अच्छे दोस्त बहुत जरूरी हैं!
दादाजी: बिल्कुल!
यही चीजें हमें सतोगुण की ओर ले जाती हैं।
पर बेटा, ये भी समझना जरूरी है कि हम हर
समय एक जैसे नहीं रहते—गुण बदलते रहते हैं।
बेटा इनके बारे में फिर कभी हम बहुत विस्तार से समझेंगें।
अभी तुम मुझे ये बताओ कि किसी भी कार्य का करता कौन है ?
राहुल (थोड़ा सोचकर): प्रकृति?
दादाजी: और इस प्रकृति
को कौन चला रहा है?
राहुल (हर्ष से): भगवान!
दादाजी (हँसते हुए): सही जवाब!
राहुल: दादाजी, यानी हमें भगवान पर विश्वास रखकर, अच्छे गुण अपनाकर अपना कार्य करना
चाहिये बिना किसी अभिमान के कि मेरी वजह से ये काम हो रहा है।
दादाजी (स्नेह से सिर पर हाथ रखते हुए): यही तो जीवन का वास्तविक ज्ञान है। सच्ची समझ है बेटा।
अब चलो, मम्मी हमारा इंतज़ार कर रही होंगी।
(दोनों मुस्कुराते हुए घर की ओर बढ़ जाते
हैं। आकाश में सूर्य अस्त हो रहा है, पर राहुल के मन में एक
नया ज्ञान का प्रकाश जाग रहा है।)
शालिनी गर्ग
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