Skip to main content

Posts

Showing posts with the label aspiration

ऐ मेरे चंचल मन

ऐ मेरे चंचल मन,तेरी ये मनमानियाँ। क्यों करवाती हैं मुझसे,ये गुस्ताखियाँ।। एहसास नहीं तुझे,क्या-क्या ये करवाती हैं। नदिया की धार से मचलती ही जाती हैं।। तेरी खातिर मैं इनकी हर बात सहती हूँ। इनकी ख्वाहिश के लिये दुनिया से लड़ती हूँ।। पर ये फिर से नई-नई फरमाइशे ढूँढ लाती हैं। मना करने पर मेरे, खफा-खफा सी रहती है।। ये जिद्दी, ये बलशाली, मुझे यूँ भटकाती है। दिन रात मेरे ख्यालों में मँडराती रहती हैं। कैसे इनको मैं समझाऊँ,कैसे इनको सँभालू मैं। हरा कर मुझे खुद से,ये सब से हरा डालती हैं।।

महत्वाकांक्षा पर शायरी

अभिलाषा