मेरी कशमकश क्या लिखुँ किस पर लिखुँ मैं हास्य कविता, सोच सोच के परेशान हूँ मैं, कुछ भी तो नही सूझता। हे भगवान मदद करो मेरी, कुछ तो राह दिखाओ, मुझ जैसी नादान पर कुछ तो तरस तुम खाओ। राजनीती पर लिखु कैसे, उस पर तो है पाबंदी, मोदी, योगी,लालू, केजरी, सबसे तौबा कर ली। सोचा कुछ कतर की खूबसूरत वादियों पर ही लिख दूँ, पर रेतों के इन ढेरों में कहाँ से नज़ारे ढूँढू। मौसम पर लिखने की सोचा तो मुझे पसीना आया, सावन के मौसम में ज्येष्ठ का महीना पाया। मंहगाई, भ्रष्टाचार के किस्से क्यूँ याद करने, हास्य तो आएगा नहीं,आँसू लगेंगे टपकने। बोलीवुड में भी अब तो कुछ नहीं है भाता, हास्य के नाम पर वो तो फूहडपन दिखाता। क्रिकेट फिक्सिंग के भी रोज देख देख नज़ारे, इसे देखना समय बर्बादी कहते हैं अब सारे। पतिदेव को देखा प्यार से ,क्या तुम पर लिख दूँ कविता, आँखो से घूरा कुछ ऐसे जैसे सामने खडा हो चीता। बच्चे बोले देखो मम्मी हम पर तरस तुम खाओ, जाओ जाकर अपनी किसी सहेली को सूली चढ़ाओ। सहेलियाँ यहाँ मिली मुश्किल से उन पर कैसे लिख दूँ, इस हास्य कविता के चक्कर में उनको न मैं खो दूँ। पडोसियों पर लिख दिया तो फालतू में हो जाएगा पंग...