Skip to main content

सुभद्रा कुमारी चौहान पर कविता


            सुभद्रा कुमारी चौहान 

तिरंगें के रंग में रंगी, एक कवयित्री दीवानी थी।

कलम की तलवार चलाती,वो सुभद्रा सेनानी थीं।।

 प्रयाग के निहालपुर में,जन्मी शब्दों की रानी थी,

जमींदार रामनाथ सिंह की, गुडिया वो सयानी थी,

खंडवा के लक्ष्मण सिंह के, दिल की ठकुरानी थी,

बेटी सुधा को माँ सुभद्रा,सुनाती नित कहानी थी,

लेखनी की तेज धार से,लोगों में भरती जवानी थी।

तिरंगें के रंग में रंगी, एक कवयित्री दीवानी थी।

कलम की तलवार चलाती, वो सुभद्रा सेनानी थीं।

 शिक्षा छोड, आजादी की डोर संभाली हाथों में,

पहली महिला कूद पडी, आंदोलन के अंगारों में,

पति का पूरा साथ मिला, देशप्रेम के कामों में,

यौवन की रातें गुजार दी, जेल की दीवारों में,

भाषणों में भरती अपनी जोश वाली वाणी थी।

तिरंगें के रंग में रंगी, एक कवयित्री दीवानी थी।

कलम की तलवार चलाती, वो सुभद्रा सेनानी थीं।

रचनाओं ने भारत में,आज तक है धूम मचाई,

लक्ष्मीबाई की कविता, बच्चे बच्चे ने है गाई,

कहानियों से दुखी नारी की,पीडा भी दिखलाई,

सामाजिक समस्याओं पर, तेज तलवारें चलाई,

जादूगरनी शब्दों की थी, हर बात तूफ़ानी थी।

तिरंगें के रंग में रंगी, एक कवयित्री दीवानी थी।

कलम की तलवार चलाती, वो सुभद्रा सेनानी थीं।

विधानसभा मध्यप्रदेश की, सदस्या इन्हें बनवाया,

सम्मान में भारत ने, डाकटिकट इनका छपवाया,

सेना ने भी एक जहाज का, नाम सुभद्रा रखवाया,

कार दुर्घटना का हाय, काल ने कैसा चक्र चलाया,

सो गई वो साहित्य की, जो अद्भुत पटरानी थी।

तिरंगें के रंग में रंगी,एक कवयित्री दीवानी थी।

कलम की तलवार चलाती वो सुभद्रा सेनानी थीं।


 

Comments