Skip to main content

बस में नही रहता मन मेरा

 बस में नही रहता मन मेरा

मन की बस चली पडती है

न कंडकटर न टिकट पर

ड्राइवर पाँच रख लेती है 

भटकटी फिरती इधर उधर

कभी इस डगर कभी उस डगर

ख्वाहिशों का नगर दिखाती

चारो ओर से लुभाती

भोला मन भी ललचाता

जिद करता और बाहर आता 

पर मन को कहाँ ये खबर

पूरा न होगा ये सफर

 

Comments