तरकारियों की सीख
आज रसोई की तरकारियाँ, सिखा रहीं मुझे प्रेम करना,
अपनी अपनी खूबी से दिखा रहीं प्रेम
को गढ़ना।
इठलाकर बोली ये प्याज, मानले तू मेरा
अंदाज
अपने प्रेम की खुशबू से उसका अँगना महका
देना,
पर काटे तुझको जो यूँ ही, आँसु उसे
पिला देना।
बोला टमाटर, थोडा ठहरकर, मेरी बात पर
भी गौर कर,
अपने प्रेम की लाली से, जीवन उसका
सँवार देना,
सबकुछ उसका अपनाकर, जीवन का स्वाद
बढा देना।
बोला चुकंदर, आ जरा अंदर, कहता हूँ मै
बात सुंदर
बिखराकर प्रेम के रंग तू अपने रंग
में रंग लेना।
चाहे हो किसी भी ढंग का खुशियों का
उसे संग देना।
धनिया बोला, सुन मुनिया, छोटी सी है
ये दुनिया,
अपनी खूबसूरती से उसकी दुनिया को सजा
देना।
पिस कर भी तुम उसके घर की इज्जत को
बचा लेना।
मिर्ची बोली, सुन मेरी बच्ची, बनना पडता
है कभी तिरछी
सम्मान तू सबका करना पर अपना मान भी
रखना,
तीखी तलवार उठा लेना पर जुल्म ना सहन
करना,
बोला आलू ओ मेरी “शालू” मैं भी तो
कुछ कह डालूँ
मेरे जैसे सब में तू, आसानी से घुल
मिल जाना
सबको अपनाना प्रेम से पर, अपनी पहचान
ना खो देना।
आज रसोई की तरकारियाँ सिखा रहीं मुझे
प्रेम करना,
अपनी अपनी खूबी से दिखा रहीं प्रेम
को गढ़ना।
शालिनी गर्ग
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