सीता जी का त्याग ”एक अनकही झलक”
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राम जी से
कहें एक दिन जानकी,
नाथ मैं आप से एक वर माँगती।
आपका प्रेम मुझ पर सदा है अटल,
बस इसी प्रेम का साक्ष्य हूँ चाहती।।1।।
यूँ निहारें सिया, राम जी एकटक,
देख पी के नयन, झट झुके नैन पट।
हाथ लेकर सिया का हृदय पर रखा,
माँग लो जो न माँगा प्रिये आजतक।।2।।
आ रही है अवध में बडी शुभ घड़ी,
आज आनंद की लग गई है झड़ी।
और मेरी सिया आज माँगे है वर,
बैठ कर सब कहो, कब से हो तुम
खड़ी ।।3।।
जान भी माँग लो, दूँ अभी जानकी,
ये वचन है दिया, ये शपथ राम की।
गोद में रख के सर, अब पिया से कहें,
कामना मैं रखूँ वन में इक धाम की।।4।।
वार दूँ साध्वी मैं अभी सारे वन,
राजसी मैं बना दूँ सभी आश्रम।
हर दिशा हर कदम, साथ
दूँगा सदा,
बस नहीं माँगना,
आज कोई हिरन।।5।।
काँपते होंठ से, जानकी ने कहा,
कुछ भीगे नयन कुछ गला था रुँधा।
आपको त्यागना, होगा स्वामी मुझे,
जो कहा था रजक ने, मुझे है पता।।6।।
सुन सिया के वचन, राम जी चौंकते,
प्यार से गाल के, अश्रु
को पोंछते।
तुम हो भोली सिया, कुछ न ऐसा हुआ,
मेरी रानी यूँ ज्यादा,
नहीं सोंचते।।7।।
न्याय अन्याय क्या, जानता हूँ सही,
जो धरम राज का, है करूँगा वही।
तुम पतित को भी, पावन बना दो सिया,
दोष धोबी का है, ये तुम्हारा नहीं।।8।।
आज तक
पाप मैंने भी कितने किये,
क्या
गिनाऊँ तुम्हे जानती हो प्रिये।
बाली का वध
किया, पेड की ओट से,
विप्र
हत्या के भी, दाग मैंने लिए।।9।।
राम लीला करें, प्रभु का अधिकार है,
मेरी लीला कहो, क्यों न स्वीकार है।
दीजिये एक अवसर, मुझे रामजी,
ये नहीं दंड़ है, मुझ पे उपकार है।।10।।
त्यागी नारी का जीवन नहीं है सरल,
फूल नन्हे खिलेंगे अयोध्या के कल
ओ जनक नंदनी मिथिला की मैथली,
मायके में जा के कुछ बिता आओ पल।।11।।
अब अवध की प्रजा न्याय है माँगती,
दाग हो राम पर वो नही चाहती।
भूमिजा हूँ समा जाऊँगी भूमी में,
प्रार्थना है यही भेज दो सारथी।।12।।
दूर होगा ये तन साथ होगा ये मन,
वैदेही छोड आएँगे तुम को लखन।
त्याग सीता का क्यों, राम ने कर
दिया,
गूँजता ही रहेगा युगों तक
प्रश्न।।13।।
शालिनी गर्ग
24 जुलाई 2025
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