कहानी 15
शीर्षक: जीवन क्या है"आइसक्रीम
या मोमबत्ती?"
शाम का समय है, राहुल और दादाजी आइसक्रीम खाते हुए पार्क से
घर लौट रहे हैं।
[राहुल (आइसक्रीम खाते हुए
कहता है
दादाजी! खेलने के बाद आइसक्रीम खाने का मज़ा ही कुछ और होता है।
अब इस टेस्टी टेस्टी आइसक्रीम पर एक इंग्लिश इडियम बोलूँ?
दादाजी (हँसते हुए) बिलकुल बेटा! सुनाओ।
राहुल (गर्व से) "Life is like an ice cream enjoy it before it melts!"
मतलब दादाजी ज़िंदगी
आइसक्रीम जैसी है, जब तक पिघली नहीं, मजा
ले लो!
दादाजी (मुस्कुराते हुए) बात तो बिल्कुल सही है बेटा…
पर मैं तो कुछ और ही कहूँगा —
"Life is like a candle — you must use your time... to
shine... before the flame... goes
out."
राहुल (चौंककर) क्या बात दादाजी! आप भी अंग्रेज़ी में!
दादाजी (हँसकर) हाँ भई, हमने भी
तुम्हारी तरह स्कूल में इंग्लिश पढ़ी थी।
अब ज़रा तुम बताओ — इसका हिंदी मतलब क्या होगा?
राहुल (सोचते हुए) पहले आप मुझे "कैंडिल" और "फ्लेम" की
हिंदी बताइए —क्या होती है,?
दादाजी (हँसते हुए) अच्छा बाबा, सुनो —"कैंडिल" मतलब मोमबत्ती, और "फ्लेम" मतलब लौ।
चल मैं ही बताता हूँ इसका मतलब —
दादाजी (धीरे-धीरे) "जीवन एक मोमबत्ती की तरह
है, जब तक लौ जल रही है, तब तक रोशनी फैलाने का पूरा प्रयास
करो।"
राहुल (थोड़ा सोचते हुए) हम्म… पर दादाजी, आइसक्रीम तो मज़ेदार होती है।
पर कैंडिल मतलब मोमबत्ती ना दादाजी हाँ मोमबत्ती
जैसे जलने में कहाँ मज़ा है ?
दादाजी (धीरे से
मुस्कराते हुए) सही कहा बेटा, आइसक्रीम मज़ेदार होती है। मिठास देती है —
पर थोड़ी देर के लिए फिर आइसक्रीम खत्म खेल खत्म।
मोमबत्ती तपती है, जलती है —औरों को रोशनी देती है,
राह दिखाती है।
और सबसे बड़ी बात — जब एक मोमबत्ती जलती है, तो
वो कई सारी और मोमबत्तियाँ जला सकती है… वो भी बिना बुझे।
राहुल (थोड़ा सोचते हुए): “हम्म…
शायद आप सही कह रहे हो दादा जी।
फिर मुस्कराकर चिढ़ाते हुए) पर दादाजी, अब LED
लाइट का जमाना है! आपकी मोमबत्ती तो अब पुरानी हो गई ना?
[दादाजी (हँसते हुए)] हाहा! सही कहा बेटा…
तो फिर तुम LED बल्ब बन जाओ
— ज़्यादा रोशनी दो, मत बनो मोमबत्ती
मतलब — जैसे भी बनो, पर औरों को
रोशनी दो, खुशियाँ दो।
(दोनों हँसते हुए बाते करते
हुए घर पहुँचते हैं।)
रात को खाना खाकर राहुल
फिर दादाजी के पास आता है।
राहुल (उत्साहित होकर) दादाजी! आज गीता में कौन-सा श्लोक पढ़ाएँगे?
दादाजी (प्रसन्न होकर)आज हम पढ़ेंगे —
श्लोक 2.69
मेरे साथ दोहराओ: राहुल (धीरे-धीरे दोहराता है
"या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।।"
दादाजी (समझाते हुए) इसका अर्थ है बेटा —
"जो सब जीवों के लिए रात है, वह
आत्मसंयमी के जागने का समय है,
और जो सबके जागने का समय है, वह आत्मसंयमी
राहुल (थोड़ा उलझकर): दादाजी ये आत्म संयमी कौन है क्या ये
उलटे होते हैं जब सबके लिये रात होती है तब
उनके लिए
दिन होता है ।
दादाजी (हँसते हुए): हा हा! बेटा, आज तो हमारी आइसक्रीम और मोमबत्ती की बहस श्लोक में भी पहुँच गई!
भगवान श्रीकृष्ण भी यही समझा रहे हैं — कौन सीधा है और कौन उल्टा?
राहुल: मतलब?
दादाजी (गंभीर होकर): देखो बेटा, ज़्यादातर लोग
जीवन को आइसक्रीम की तरह समझते हैं —
“खुलकर जियो, जो मन करे वो करो। पार्टी करो,
देर रात तक मस्ती करो, फिर दोपहर 12 बजे उठो और कहो — ‘इट्स माई लाइफ!’”
राहुल (हँसते हुए): सही तो है ना दादाजी।
दादाजी: हाँ बेटा, आजकल सब
लोग फिल्मों वाला "रंगीन चश्मा" पहन लेते हैं और सोचते हैं कि दुनिया
सचमुच वैसी ही रंगीन है।
पर आत्म संयमी आत्म संयमी का अर्थ है संयम से बुद्धिपूर्वक सोच समझ कर
कार्य करने वाले ।
राहुल दादाजी जो ज्ञानी होते हैं मतलब सैल्फ
कंटरोल्ड।वे कहलाते हैं आत्मसंयमी हैं ना।
दादाजी: हाँ राहुल आत्मसंयमी समझते हैं जानते हैं कि वास्तविक आनंद
क्या है । और
इस तरह वे सोच-समझकर काम करते हैं ।
राहुल (जिज्ञासा से): तो दादाजी,
उन्हें क्या आनंद मिलता है?
दादाजी: जब वो सूरज उगने से पहले उठते हैं,अपना दिन तरीके से शुरू करते हैं —
योग, ध्यान, प्रार्थना,
या आत्मचिंतन करते हैं। उन्हें जो शांति और आत्म-संतोष मिलता है,
वो किसी पार्टी या आइसक्रीम से नहीं मिल सकता। उनके पास आंतरिक खुशी
होती है।
राहुल (सोचते हुए): ओह! आंतरिक खुशी मतलब?
दादाजी (मुस्कराते हुए): बेटा, कल तो संडे है ना…कल सुबह 5 बजे हम सब शहर से दूर
वाले पार्क चलेंगे।
वहीं इस श्लोक का असली मतलब तुझे महसूस होगा।
(दादाजी मम्मी-पापा को आवाज़
लगाते हैं)
कल सुबह पाँच बजे सब तैयार रहना, हम सब शहर से
दूर वाले पार्क में जाएँगे।
मम्मी: अच्छा आइडिया है पापाजी! नाश्ता भी बाहर ही
कर लेंगे।
राहुल (आलस करते हुए ): पर दादाजी, संडे को तो मैं आठ बजे तक सोता हूँ…
पापा (हँसते हुए): अब तो बेटा, दादाजी और मम्मी तैयार हैं तो बेटा हम दोनो कौन होते हैं मना करने वाले
अब तो सुबह सुबह उठना ही पडेगा । मुझे भी जाना ही पड़ेगा!
दादाजी: अरे तुम सब लोग, एक
बार चलकर देखो तो सही — कैसी मजेदार जादुई
सी सुबह होती है!
(अगली सुबह — सब पार्क में
पहुच जाते है गाडी पार्क करते हैं )
ठंडी-ठंडी मंद मंद हवा चल
रही है , चिड़ियों की चहचहाहट हो रही है। ,
राहुल (चिल्लाते हुए ): अरे दादाजी! उधर देखो ,देखो ना मोर! कितना सुंदर है!
राहुल मोर के साथ जल्दी से फोटो लेता है ।
फिर पार्क में टहलते हुए लोगो को देखकर पूछता है
दादाजी ये जो लोग टहल रहे
हैं और ये जो कुछ
लोग योग कर रहे हैं ,
ये सब आत्म संयमी लोग हैं ना?
दादाजी: नहीं राहुल आत्म संयमी तो नहीं, पर
हाँ आत्म संयम की ओर ये एक कदम है ये लोग कम से कम अपने स्वास्थ्य के प्रति
जागरुक तो है।
राहुल: और जो लोग देर तक सोते हैं? क्या वे स्वस्थ नहीं रहते ? क्या वो
बीमार होते हैं? दादाजी
दादाजी: नहीं बेटा, ऐसा तो नहीं पर जो जल्दी उठता है, उसे ताज़ी हवा मिलती है जिसमें ज्यादा आक्सीजन होता है, सूरज की पहली किरण और शांत वातावरण मिलता
है —तो उसका तन और मन दोनों स्वस्थ रहते है।
राहुल दादाजी दोनो घास पर नंगे पैर चलते हैं
राहुल (साँस लेते हुए): दादाजी, ये हवा कितनी अच्छी है… और चिड़ियों की आवाज़ भी!
दादाजी (मुस्कराते हुए): अभी नींद आ रही है राहुल ? सुबह की नींद अच्छी थी या ये अनुभव?
राहुल: अब तो नींद भी उड़ गई दादाजी!क्या यहाँ
वीडियो बनाएँ सुंदर आएगा।
दादाजी : चलो राहुल यहीं
तुम वीडियो बनाओ ,
राहुल इस बार तो दादाजी
हमारा वीडियो आधा रात का और आधा दिन को बनेगा
दादाजी :हाँ दोनो को जोड लेना।
पार्क की हरी घास पर दादाजी और राहुल एक पेड़
के पास बैठते हैं। कैमरा सामने लगाते है, राहुल रिकॉर्डिंग ऑन करता है।
दादाजी (धीरे-धीरे बोलते हुए):तो बेटा, भगवान श्रीकृष्ण का कहना है कि...
सिर्फ कुछ ही लोग ऐसी खूबसूरत सुबह का आनंद उठाते हैं।
बाकी तो रात देर तक पार्टी करते हैं और सुबह देर तक सोते रहते हैं।
राहुल (सिर हिलाकर): हाँ दादाजी वीकेंड का मतलब ही late night तक जगना और late morning तक सोना है।
दादाजी: भगवान के रात और दिन कहने का एक गहरा अर्थ भी है राहुल कि
दोनो की सोच में रात और दिन का ....मतलब ...बहुत अंतर होता है । जैसे एक
इंसान को कुछ देकर खुशी मिलती है,
तो दूसरे इंसान को को कुछ पाकर खुशी मिलती है।
एक अपनी खुशी के बारे में सोचता है,और दूसरा — दूसरों को खुश करके खुद खुश हो
जाता है।
राहुल (सोचते हुए): हाँ… किसी को गिफ्ट लेकर मज़ा
आता है,
तो किसी को गिफ्ट देकर…यही मतलब है ना दादाजी?
दादाजी (मुस्कराकर): बिलकुल बेटा। अब तुम ही बताओ —
कौन सीधा और कौन उल्टा?
राहुल (मुस्कराकर): दादाजी… आपकी मोमबत्ती सीधी है
—जो सबको रोशनी देती है, मतलब खुशी देती है ।
और मेरी आइसक्रीम उल्टी है जो
सिर्फ मुझे ही खुशी देती है। अब सही है ना ?
राहुल (थोड़ासा रुककर, गंभीर होकर) पर
दादाजी, क्या सिर्फ अपनी खुशी के बारे में सोचना गलत है?
दादाजी (प्यार से सिर सहलाते हुए): नहीं बेटा,
अपनी खुशी भी ज़रूरी है क्योंकि
जब हम खुश रहेंगे, तब ही हमारी आत्मा भी प्रसन्न रहेगी। थोडे समय के लिये तो वो खुशी भी
जरूरी है .....
लेकिन…अगर हम हर वक्त हमेशा बस छोटी-छोटी चीजों में ही खुशी ढूँढ़ते रहेंगे, ..... पर उस खुशी के लिए अपने ज़रूरी काम छोड़ दें ,तो फिर वो खुशी नहीं,
कमजोरी बन जाती है।....
हमारा मन उनमें ही भटकता रहता है ।
राहुल तो अगर हम उन चीजों
के लिए अपने महत्वपूर्ण कार्य छोड दे तो वो गलत है।
दादाजी हाँ,हमें
पहले अपना कर्तव्य पूरा करना है
फिर जीवन का आनंद भी लेना है।
राहुल (ध्यान से सुनते हुए): मतलब दादाजी जीवन का स्वाद भी चखना है पर अपना
काम पहले पूरा करना है । तो पहले
अपना काम पूरा, फिर मज़ा?
दादाजी: हाँ बेटा, पहले
कर्तव्य — फिर आनंद,तभी बनते हैं आत्म संयमी। यही है आत्म संयम ।
दादाजी: ये जीवन एक सफर
है बेटा जिसमें फूल हैं, झरने
हैं, ठंडी हवा है,मस्ती भी है, और हाँ… कुछ काँटे और पत्थर भी हैं।
हमें बिना रुके, अपने संयम के साथ उस ऊँचाई तक
पहुँचना है — जहाँ हमारी मंज़िल है।
राहुल (जोर से): तो दादाजी रास्ते का मज़ा भी लेना
है…और मंज़िल को भूलना भी नहीं है!
दादाजी (हँसते हुए): शाबाश राहुल! अब तू असली
समझदार बन रहा है।
(तभी मम्मी दूर से आवाज़ देती
हैं)
मम्मी: अगर आप दोनों की ज्ञान चर्चा पूरी हो गई हो, तो चलिए अब ब्रेकफास्ट की ओर!
राहुल (मुस्कराकर): मतलब दादाजी… अब जीवन का स्वाद
लेने चलते हैं?
दादाजी (हँसकर): हाँ बेटा, अभी
तो ब्रेकफास्ट ही अपनी मंजिल है । हाँ दादाजी अब पेट का भी संयम टूट रहा है ।
(सब हँसते हुए गाड़ी में बैठ
जाते है।)
शालिनी गर्ग
Comments
Post a Comment