1222 1222 1222 1222
रदीफ़ – होना
क़ाफ़िया – आ की बंदिश
बड़ा मुश्किल है यारा तुझ से, बिन
आँसू विदा होना,
बिना तेरे ये जीना भी, लगेगा इक
सज़ा होना।।1।।
हँसे थे हम लड़े थे हम, दुखों
में सँग खड़े थे हम,
खलेगा अब तो पल-पल में तेरा मुझ
से जुदा होना ।।2।।
गुज़ारे सारे लम्हे जो कहें
मुझसे वो इतराकर,
बना ले पोटली उनकी, तू अब उन पे फ़िदा
होना।।3।।
कभी देना ख़बर अपनी, कभी लेना
ख़बर मेरी,
इजाज़त है नहीं तुझको भुला कर
गुम-शुदा होना।।4।।
सुबह की चाय की चुस्की अकेले अब
न भायेगी,
न बातों की झड़ी होगी, न झट-पट
सैर का होना।।5।।
तेरे बिन अपनी महफ़िल में, ये
रौनक़ कैसे आएगी,
लगेगा रंग फीका सा, चुभेगा तेरा
ना होना।।6।।
सिखाई तू ने ही मुझको, बड़ी छोटी
सभी बातें,
करूँ कैसे मैं शुक्राना, तेरा आना
दुआ होना।।7।।
ये था मालूम बिछड़ेंगे यूँ इक
दूजे से हम कल को,
नहीं मुमकिन पराये देश, में सब
का सदा होना।।8।।
कसक बस है यही दिल को, थे राही
हम यहीं तक के,
लिखा हो रास्तों का फिर, मुक़द्दर
में मिला होना।।9।।
शालिनी गर्ग
Comments
Post a Comment