🌟 कहानी 16 शीर्षक: "महापुरुष कौन?"
आज राहुल एक प्रसिद सैलीब्रेटी शो में गया था पर निराश होकर घर लौटता है। उसकी आँखों में एक चमक थी जो अब बुझी हुई लग रही है। वह सीधे दादाजी के पास आता है।
राहुल (उदास होकर): दादाजी…पता
है आज मैं अपने फेवरेट सेलिब्रिटी शो में गया था।
वहाँ मेरे पसंद के एक्टर और सिंगर आए थे। जिन्हे मैं हमेशा फॉलो करता हूँ, वीडियो देखता हूँ, गाने सुनता हूँ…पर देखिए मेरी किस्मत,
इतनी भीड़ थी कि मैं फोटो तो क्या, ठीक से देख भी नहीं पाया उन्हे !
बस स्क्रीन पर ही उनके चेहरे दिखे।
दादाजी (सहानुभूति से): अरे बेटा,
कोई बात नहीं, होता है होता है कभी कभी हमने कुछ सोचा होता
है और हो कुछ और जाता है। दादाजी (कुछ गंभीर होकर) राहुल बेटा ये
सैलीब्रेटी लोग हैं उनको फोलो करते हो अच्छी बात है पर क्या तुम बता सकते हो
सैलीब्रेटी मतलब प्रसिद्ध लोग और महापुरुषों में क्या अंतर है ?
राहुल (तपाक से) हाँ दादाजी! सैलीब्रेटी
वे लोग मतलब जिन्हे हर कोई जानता है उनका
बहुत नाम होता है उनके पास, पैसा, शोहरत सब कुछ होता है उनके पास। ।और उनके ढेर सारे फॉलोअर्स होते
हैं । बहुत फेमस होते हैं वे!
दादाजी (मुस्कराते हुए): बिलकुल बेटा, सेलिब्रिटी वो होते हैं जो प्रसिद्ध होते हैं।
लेकिन मैने पूछा था क्या तुम जानते हो — सेलिब्रिटी और महापुरुष में अंतर क्या है?
राहुल (थोड़ा चौंकते हुए): अरे! दोनों तो फेमस ही होते हैं ना दादाजी?
क्या कोई बड़ा अंतर है इनमें?
दादाजी (गंभीरता से): हाँ बेटा,
बहुत बड़ा अंतर है।
सेलिब्रिटी अपनी मेहनत और टैलेंट से खुद के लिए नाम कमाते हैं। अपने लिए संघर्ष करते हैं तब वे
प्रसिद्ध होते हैं।
पर
महापुरुष वो होते हैं जो दूसरों के लिए जीते हैं, अपने सुख-दुख, आराम सब छोड़कर, समाज और मानवता के लिए काम करते हैं। उन्हे अपने धन वैभव की चिंता नहीं रहती वे दूसरो की खुशी
के लिये अपना जीवन लगा देते है ।
राहुल: दादाजी आप ये कहना चाहते हैं कि महापुरुष ...ग्रेट मतलब महान होते है पर सैलीब्रैटी महान नहीं होते?
दादाजी: हाँ राहुल कुछ
ऐसा ही !
राहुल (सोचते हुए): तो दादाजी... क्या हमें सेलिब्रिटी को फॉलो नहीं करना चाहिए?
दादाजी (समझदारी से) : नहीं बेटा, ऐसा नहीं है।
सेलिब्रिटी से हम मेहनत, काम करने का तरीका, टाइम मैनेजमेंट जैसी बहुत सारी चीज़ें सीख सकते हैं।
पर जीवन जीने का तरीका, सोच, और आचरण — ये सीखना है तो महापुरुषों से सीखो।
राहुल (थोड़ा झेंपते हुए): पर दादाजी… हम तो सब कुछ सेलिब्रिटी से ही सीखते हैं —
उनका लेटेस्ट फैशन स्टाइल ,कपडो का स्टाइल, बात करने का स्टाइल, और तो और , पार्टीज़ करना… सब लोग उनके जैसा
ही तो कोपी करते है।
दादाजी (हँसते हुए): सीखो बेटा, पर उनसे ये सीखो की वे आज जिस ऊँचाई पर हैं, वहाँ तक पहुंचने में उन्होंने कितनी मेहनत की है, कितना संघर्ष किया है! पर जीवन का
तरीका सोच समझकर सीखो।
उनके जैसा फैशन करो, पर वो जो मम्मी-पापा को अच्छा लगे, सबको अच्छा लगे जो किसी के सामने पहनने में शर्म न आए।वैसा फैशन करो ऊटपटांग फैशन नही।
राहुल: तो सेलिब्रिटी से क्या नही सीखना है दादाजी
दादाजी (स्नेह से): काफी सारे
सैलीब्रैटीज जो आचरण मतलब व्यवहार करते है वे बिना सोचे समझे करने लगते हैं । उनके
पास अचानक धन आ जाता है उनमें अहंकार घमंड आ जाता है। वे क्या सही किया गलत ये भी
भूल जाते हैं। राहुल अगर नकल करनी ही है, तो महापुरुषों की करो अपने इन सेलिब्रिटी की
नहीं।हमें अपना प्रेरणा का श्रोत उसे बनाना है जो वास्तव में
जीवन के मूल्यों को जानता है।
जिन्होंने अपने जीवन मेसत्य को अपनाया है , सेवा करके सुख पाया है , करुणा से सबको गले लगाया है, और त्याग से अहंकार को दूर
भगाया है ।
वो तुम्हें सिखाएँगे कैसे सही इंसान बना जाता है।
दादाजी (गीता की किताब खेलते हुए): आज के गीता के अध्याय 3 के 21,श्लोक में भगवान यही बताते
हैं
"यद् यद् आचरति श्रेष्ठ: तत् तत् एव इतरो जन:।
स यत् प्रमाणं कुरुते लोकस् तत् अनुवर्तते॥"
(भगवद्गीता – अध्याय 3, श्लोक 21)
अर्थ: जो श्रेष्ठ पुरुष जैसा आचरण करता है,
जनसामान्य उसी का अनुसरण करते हैं।
महापुरुष जिस तरह
करके, दिखलाते अपना व्यवहार।
वैसे ही अनुसरण उनका, करता रहता सारा संसार।।21।।
भगवान इस श्लोक के
माध्यम से राहुल राजा जनक का उदाहरण देते है
राहुल : दादाजी राजा जनक जो सीता जी के पिता थे, क्या वो बहुत महान थे?
दादाजी : हाँ बेटा वे बहुत महान थे योग भोग दोनो उनकी मुट्ठी में थे।
राहुल (हैरान होकर): अरे वाह! "योग-भोग मुट्ठी में", पर दादाजी, इसका अर्थ क्या हुआ?
दादाजी: इसका मतलब है, वे भोग में रहते हुए भी योगी थे।
एक ओर वे सोने के सिंहासन पर बैठने वाले शक्तिशाली, वैभवशाली राजा थे,
पर दूसरी ओर, उनका मन हमेशा शांत भगवान में परमात्मा में लीन रहता था।
राहुल: मतलब वो योगी राजा थे?
दादाजी (गर्व से): : हाँ
उन्हे राज ऋषि कहा जाता है। राजा भी और ऋषि भी! उनका आत्म-ज्ञान अद्भुत था।
राहुल: दादाजी, क्या कोई सेलिब्रिटी मतलब प्रसिद्ध
लोग भी इतना महान बन सकते है?
दादाजी: हाँ,हाँ बेटे क्यों नही,, बिल्कुल बन सकते हैं। प्रसिद्ध लोगो के चाहने वाले
उन्हे सुनने वाले मतलब फोलोअरस बहुत
ज्यादा होते है अगर वे एक आदर्श व्यक्ति
की तरह जीवन जीते है तो वह बहुत जल्दी
दुनिया के लिये महान बन सकते है बस प्रसिद्ध
व्यक्ति को अपना जीवन बहुत सोच समझकर जीना होता है क्योंकि उनके ऊपर बहुत
जिम्म्दारी होती है।
राहुल: :दादाजी जिम्मेदारी कैसी?
दादाजी: बेटा, जैसे अगर कोई प्रसिद्ध व्यक्ति कोई अच्छा काम करता है —
तो लोग कहते हैं, "हमें भी ऐसा करना चाहिए!"
लेकिन अगर वही कोई गलत काम करे, तो लोग कहते हैं — "वो भी तो कर रहा है, तो हम क्यों न करें?" इसलिए जितना बड़ा नाम, उतनी बड़ी जिम्मेदारी।
राहुल (गंभीरता से): ओह! तो इसीलिए कभी-कभी उनके
बोलने पर इतने ज्यादा विवाद हो जाते हैं कि न्यूज चैनल वाले वही दिखाते है।
दादाजी (सिर हिलाते हुए): हाँ बेटा उनके गलत बोलने से दंगे-फसाद तक भी हो जाते हैं।
प्रसिद्ध और महान व्यक्ति में यही अंतर होता है महान
व्यक्ति अपना हर कार्य यह सोच कर करते हैं कि
"मेरे इस काम से दूसरों पर क्या असर पड़ेगा?" जबकि ज्यादातर सेलिब्रिटी ऐसे नहीं सोचते।
भगवान
आज के श्लोक में अर्जुन को यही
कहना चाहते हैं कि तुम श्रेष्ठ पुरूष हो और तुम जो भी आचरण करोगे सामान्य
लोग उसी तरह कार्य करेंगे, तो तुम उनके लिये एक आदर्श उदाहरण बनो।
राहुल (उत्साहित होकर): तो अच्छे काम करके ही कोई
महान बन सकता है। दादाजी, तो क्या मैं भी एक दिन महान बन सकता हूँ?
दादाजी (प्यार से):क्यों नहीं बेटा! तुम भी महान बन सकते हो।
अगर तुम एक अच्छे बेटे, अच्छे विद्यार्थी और अच्छे इंसान बनकर जियोगे,
जो भी तुम्हे देखते हैं मतलब तुम्हे फोलो करते हैं वे भी तुम्हारे जैसा अच्छा
व्यवहार करना चाहेंगे। हम सब को अपना कार्य यही सोचकर भी करना है कि हमारी गलत
आदतों का कितने लोगो पर बुरा असर पडेगा कम से कम तुम्हारे छोटे भाई बहन और
तुम्हारे दोस्तो पर तो पडेगा ही ना।
राहुल (चौंकते हुए): ओह! मतलब मैं जो करूँगा, वो मेरे भाई-बहन दोस्त ये
लोग भी वैसे करने लगेंगे?
दादाजी: बिलकुल बेटा! जैसे तुम मम्मी-पापा को देखकर चीज़ें सीखते हो — तुम
जानकर या अनजाने में अच्छा और बेकार दोनो तरह का व्यवहार उन से सीखते हो। तो जैसा
व्यवहार बडे करते हैं वैसा बच्चे करते है। वैसे ही छोटे बच्चे तुम्हें देखकर सीखते हैं।
इसलिए हमें अपने कार्य, भाषा और व्यवहार पर ध्यान देना चाहिए।
राहुल: हाँ दादाजी ये भी कहा जाता है ना
"एक्शन्स स्पीक लाउडर दैन वर्ड्स" —
दादाजी: सही कहा बेटा शिक्षा की बातों से ज्यादा हमारा किया गया
आचरण शिक्षा देता है ।
बेटा एक श्लोक में भगवान
कहते हैं कि अर्जुन
मैं भी बिना काम किए एक पल भी नहीं रहता।
राहुल (आश्चर्य से): क्या!! भगवान भी काम करते हैं?
वो तो— सभी प्लैनेट के
स्वामी हैं मतलब तीनों लोकों के स्वामी हैं उनके पास सब शक्ति है, उन्हे भी काम करना होता है ?उन्हे काम करने की क्या जरूरत ?
वे तो भगवान है एक चुटकी बजाई सब सामने। फिर भगवान काम क्यों करते हैं दादाजी?
दादाजी : हाँ बेटा
भगवान का अर्थ ही होता है जिसके पास न खत्म होने वाला अपार धन, सौन्दर्य. बल. यश,ऐश्वर्य
और त्याग है। जो जितने
बड़े पद पर उसकी जिम्मेदारी उतनी ज्यादा.....फिर भगवान पर तो सबसे ज्यादा जिम्मेदारी हैं ....भगवान
पृथ्वी पर आते हैं पर अपने लोक में भी रहते हैं । हर ग्रह, हर प्राणी सृष्टि का संचालन करते हैं, हर प्राणी की चिंता करते हैं। अगर वो काम न करें, तो पूरी सृष्टि अस्त-व्यस्त हो जाए।
भगवान एक सैकेंड के लिए भी
अपना कार्य नहीं छोड सकते। भगवान कहते हैं कि यदि मैं नियतकर्म न करूँ तो ये सारे
लोक नष्ट हो जायँगे |
राहुल: दादाजी मैं सोचता
था कि जिसके पास बहुत सा धन हो जाये तो
फिर उसे मेहनत क्यों करनी। पर हम सभी को
अपने जीवन में मेहनत करनी होती है अपने
नीयत कर्म करने होते है । अब समझ आया —
धन या शक्ति मिलने के बाद काम छोड़ना नहीं चाहिए, बल्कि और जिम्मेदारी से करना चाहिए।
दादाजी (स्नेह से): बिलकुल बेटे! जो जिम्मेदारी हमें मिली है उसे मेहनत और ईमानदारी से करना ही महानता की ओर पहला कदम है।
राहुल (आँखों में चमक के साथ):दादाजी, अब मैं सेलिब्रिटी से मेहनत सीखूँगा
और महापुरुषों से जीवन जीना!
मेरे असली हीरो वही होंगे जो दूसरों के लिए जीते हैं।
दादाजी (मुस्कराते हुए): शाबाश बेटा! अब तुमने सही प्रेरणा चुनी है।
शालिनी गर्ग
Comments
Post a Comment