सीता जी का त्याग ”एक अनकही झलक” 212 212 212 212 राम जी से कहें एक दिन जानकी , नाथ मैं आप से एक वर माँगती। आपका प्रेम मुझ पर सदा है अटल, बस इसी प्रेम का साक्ष्य हूँ चाहती।।1।। यूँ निहारें सिया, राम जी एकटक, देख पी के नयन, झट झुके नैन पट। हाथ लेकर सिया का हृदय पर रखा, माँग लो जो न माँगा प्रिये आजतक।।2।। आ रही है अवध में बडी शुभ घड़ी, आज आनंद की लग गई है झड़ी। और मेरी सिया आज माँगे है वर, बैठ कर सब कहो, कब से हो तुम खड़ी ।।3।। जान भी माँग लो , दूँ अभी जानकी, ये वचन है दिया, ये शपथ राम की। गोद में रख के सर , अब पिया से कहें, कामना मैं रखूँ वन में इक धाम की।।4।। वार दूँ साध्वी मैं अभी सारे वन, राजसी मैं बना दूँ सभी आश्रम। हर दिशा हर कदम , साथ दूँगा सदा, बस नहीं माँगना , आज कोई हिरन।।5।। काँपते होंठ से , जानकी ने कहा, कुछ भीगे नयन कुछ गला था रुँधा। आपको त्यागना , होगा स्वामी मुझे, जो कहा था रजक ने , मुझे है पता।।6।। सुन सिया के वचन, राम जी चौंकते, प्यार से गाल...
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