ग़ज़ल
12211222-1222-1222-1222
क़ाफ़िया = 'आन' की बंदिश
रदीफ़ = समझेगा
1.कभी तो वो मेरे दिल के छिपे अरमान समझेगा।
पढ़ेगा नैन वो मेरे मेरी मुस्कान समझेगा।।
2.नहीं ख़्वाहिश दिला दे वो हीरे मोती वाले गहने ।
है छोटी सी यही चाहत मुझे बस जा न समझेगा।।
3. नदी बोली बड़ा मुश्किल मिटा के खुद को मिल जाना।
समंदर भी कभी मेरा किया बलिदान समझेगा।।
4.हवा के तीखे वारों से उड़ा बादल छिपा जाकर।
कहे अंबर बरस पगले इसे तूफ़ान समझेगा।।
5.बिना उम्मीद के चाहा जिगर का टुकड़ा माने हम।
नहीं मालूम था मुझको इसे एहसान समझेगा।।
6.लुभाने वाली सब बातें नकारी जब मैंने उठकर।
भरी महफ़िल हमें धरती का वो शैता न समझेगा।।
7.बिता दी ज़िन्दगी आधी यहीं परदेश में यारों।
कभी सोचा नहीं था ये हमें मेहमान समझेगा।।
8. मुकम्मल है ग़ज़ल तब ही करूँ जद्दोजहद जब भी।
मिलेगी तब ख़ुशी शालू जब क़द्रदान समझेगा।।
शालिनी गर्ग
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