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कहानी 14: क्रोध आने का कारण



कहानी 14: क्रोध आने का कारण

शाम का समय है। राहुल गुस्से से अपने कमरे में टहल रहा है।और स्वयं से ही बात कर रहा है।

राहुल (झुंझलाते हुए):! पापा से कितनी बार कहा था कि मॉल ले चलो, पर हर बार कोई न कोई बहाना! सब दोस्त जा चुके हैं, बस मैं ही नहीं गया!

(तभी दादाजी की आवाज आती है)
दादाजी: राहुल, कहाँ हो बेटा? अब तक आए नहीं? मैं इंतज़ार कर रहा हूँ।

राहुल (तेज़ आवाज में): आया दादाजी! बस बैग पैक कर रहा हूँ… दो मिनट!

(राहुल जल्दी जल्दी बैग पैक करके दादाजी के कमरे में आता है)

दादाजी (मुस्कराते हुए): राहुल बेटा। बताओ तो, स्थितप्रज्ञ बनने की कोशिश हो रही है या नहीं?

राहुल (भौंहे चढ़ाते हुए): कहाँ दादाजी! मुझे तो उल्टा पापा पर गुस्सा आ रहा है। तीन दिन से मॉल चलने का कह रहा हूँ, और हर बार... “ऑफिस का काम!” या कोई दूसरा काम बस माल जाने का समय नही है पापा के पास। देखिए ना, सब दोस्त घूम कर आ चुके वहाँ, मैं ही नहीं गया मैं ही रह गया हूँ!

दादाजी: बेटा, पापा को ज़रूरी काम रहा होगा। मॉल कहीं भाग तो जा नहीं रहा, दो- तीन दिन में चले जाना। जब पापा के पास समय होगा।

राहुल (झुंझलाकर): हाँ हाँ, आप तो अपने बेटे की ही साइड लेंगे! दादाजी  चलिए… आप अपनी गीता शुरू करिए।

दादाजी (हँसते हुए): तो आज भगवान अर्जुन को यही समझा रहे हैं कि क्रोध क्यों आता है और उसका परिणाम क्या होता है।

राहुल (उत्सुकता से): सच में ( राहुल एकदम से बैठ जाता है) ? क्रोध मतलब गुस्सा ना दादाजी ? भगवान आज गुस्से के बारे में बता रहे हैं? ये कैसे .....आज तो मुझे भी गुस्सा आ रहा था दादा जी।

 दादाजी: भगवान को पता चल गया न, कि आज हमारे राहुल बेटा का मूड खराब है!

राहुल (हँसते हुए): लेकिन दादाजी, भगवान तो अर्जुन को बता रहे हैं ....क्या अर्जुन का भी मूड खराब है ?

दादाजी: नहीं रे, कल भगवान ने स्थितप्रज्ञ मतलब अपनी बुद्धि को स्थिर रखना बताया था ना, तो भगवान कहते है अगर हम अपनी बुद्धि को स्थिर नहीं रखते तब क्या होता है।

राहुल: तब क्या होता है दादाजी?

दादाजी: भगवान कहते हैं जब हम अपनी बुद्धि स्थिर नहीं रखते तो हमारी इंद्रियाँ मतलब सैंस ओरगन इधर उधर भटकते हैं और हमारे मन को विचलित करते रहते है। मन से कहते रहते हैं हमें ये चाहिए हमें वो चाहिए।

जैसे तुम्हारे कानों ने मॉल की बात सुनी, आँखों ने चाहा मॉल देखना, मन बोला – “मुझे मॉल जाना है”।

राहुल (हँसते हुए): और मन ने बुद्धि से कहा – “मुझे जाना ही है, मुझे अभी जाना है!”

दादाजी (मुस्कराते हुए): हाँ यही, पर   अगर बुद्धि स्थिर है, तो वो सोचती है –की आज जा सकते है कि नहीं, ये सब सोचकर ,ये देखकर कि कितना जरूरी है, उससे जरूरी कोई और काम शेष तो नहीं है अभी समय सही है कि नहीं । तब निर्णय लेगी कि ठीक है चलते हैं ।

राहुल:तो क्या दादाजी पापा ने स्थिर बुद्धि से सोच कर निर्णय लिया है?

 दादाजी: हाँ बेटा नहीं तो उन्हे राहुल को मॉल ले जाने में कोई परेशानी थोडे ही थी। थोड़ा धैर्य रखो, देखना पापा एक दो दिन में ले ही जाएँगे मॉल ।

राहुल (धीरे से): तो दादाजी, मैं बस अपने मन की बात सुन रहा था ।

दादाजी (स्नेह से): हाँ बेटा तुमने जब से मॉल के बारे में सुना बस मन में एक ही रट लग गई मॉल जाना है मॉल जाना है उसके अलावा दिमाग मे ,मन में कुछ चल ही नही रहा । बुद्धि मन और इंद्रियों की बातों में आकर मोहित हो गई। अब जब बुद्धि ने सोचा और वो नहीं हो पा रहा तो बुद्धि क्या करती है क्रोधित हो जाती है

इसलिए तो भगवान श्रीकृष्ण गीता के अध्याय 2, श्लोक 62 में कहते हैं:

"ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषू पजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥"

भगवान कहते है कि हे अर्जुन

जब कोई मनुष्य इंद्रियों से विषयों का चिंतन करता है – जैसे कुछ अच्छा देखना, सुनना, छूना, सोचना – तो उससे उस चीज़ में आसक्ति उत्पन्न होती है। उससे फिर काम यानी उसे पाने की इच्छा होती है।
और जब इच्छा पूरी नहीं होती – तो आता है क्रोध

राहुल (जिज्ञासा से): दादाजी ये आसक्ति क्या होती है?

दादाजी: चलो राहुल हम , एक-एक शब्द समझते हैं –
जब कोई चीज़ हमें बहुत पसंद आने लगती है, उसी के बारे में  बार-बार सोचते हैं – उसे कहते हैं आसक्ति। और तुम कह सकते हो उसे लाइक,लाइक कर  लगते हैं।

जब उसे पाने की ज़ोरदार इच्छा होती है – वो है काम इच्छा। तुम कह सकते हो वांट

और जब वो इच्छा पूरी नहीं होती – तब आता है क्रोध। तुम कह सकते हो एंगर

राहुल (तेज़ी से): ओह! तो पहले लाइक, फिर वांट और फिर अगर वांट नहीं मिला तो क्रोध! एंगर।

तो दादाजी मैने एक  फार्मूला बनाया , आसक्ति + काम = नहीं मिला तो क्रोध और मेरी लैगवेज में कहूँ तो 

 लाइक + वांट = इफ नोट गैट तब एंगर "Like + Want = If Not Get Then Anger!"

मतलब क्रोध सही  है ना दादाजी

दादाजी (हँसते हुए): शाबाश! तुमने तो एकदम सही फार्मूला बना डाला! बेटा

ज्ञानी होते जा रहे हो  राहुल ,अब तो गीता श्लोक के फार्मूले  भी बनने लगे वाह बेटा शाबास

, आसक्ति + काम = नहीं मिला तो क्रोध यही होता है  गीता का सरल अनुवाद।

राहुल: दादा जी ये सब आपका असर है ।

पर दादाजी, अगर Like + Want = Get हो जाए, ...... मतलब जो हमने चाहा वो मिल जाए तब क्या, तब क्यों आएगा गुस्सा? तब तो ये क्रोध नहीं आएगा, है न?

दादाजी: सही सोचा राहुल , पर सुनो – अगर हमारी एक इच्छा पूरी हो जाती है, तो मन नई चीज़ को फिर से Like करने लगता है। यानी मन-इंद्रियाँ रुकती नहीं। जैसे-जैसे इच्छाएँ पूरी होती हैं, वैसे-वैसे उनकी आदत लग जाती है।

जितना ज्यादा लाइक + वांट = गैट का सफर, बिना रुके लंबा चलता है वो अच्छा तो सबको लगता है पर बाद में जब रुकता है तब तक एंगर का साइज भी बहुत अधिक बढ़ जाता है।

– तब आता है बड़ा वाला गुस्सा! क्योंकि तब मन को सहन करना आता नही उससे सहन ही नहीं होता।


राहुल (गंभीर होकर): राहुल तो दादाजी बीच बीच में कभी-कभी "Not Get" भी आते रहना चाहिए , ताकि गुस्सा छोटा रहे, उसका साइज ना बढ़े।

दादाजी: हाँ बेटा! अगर बीच-बीच में कुछ चीज़ें न मिले तो मन को समझ आता है कि हमारी सब इच्छा पूरी नहीं होती। और छोटे छोटे एंगर को हम आसानी से कंट्रोल कर सकते हैं हमें पता भी रहता है कि हमारा हर वांट पूरा होने वाला नही है। इसलिए हम आसक्ति को इच्छा बनाने  में ये सोचते है कि पता नहीं पूरा होगा या नहीं। हम तैयार रहते है दोनो के लिये मिलेगा तो सही...... नही मिलेगा तो कोई बात नहीं।


राहुल: यानी हमें आसक्ति पर नियंत्रण की प्रैक्टिस करते रहनी चाहिए?

दादाजी: एकदम सही! तभी हम अपनी बुद्धि को स्थिर रख सकते हैं।

राहुल: दादाजी अगर  क्रोध  आए तो क्रोध आने पर क्या होता है ?

दादाजी: तब भगवान अगले श्लोक (2.63) में कहते हैं:

क्रोध से मोह होता है,
मोह से स्मृति भ्रमित होती है,
फिर बुद्धि नष्ट हो जाती है,
और बुद्धि नष्ट होने पर इंसान का पतन हो जाता है।

राहुल (चौंककर): दादाजी, स्मृति भ्रमित मतलब?

दादाजी:– भगवान कहते हैं कि क्रोध आने के बाद वो वांट अब ऐसी डिजायर बन जाता है कि बस मन बुद्धि में हर समय, सुबह -दोपहर- शाम वही घूमता रहता है जिससे स्मरण शक्ति  हमारी मैमरी भ्रमित हो जाती है भटक जाती है, मतलब उसकी विवेक शक्ति खत्म हो जाती है। जिसे कहते हैं विवेकशक्ति का नाश

राहुल: दादाजी अब ये विवेक शक्ति क्या होती है?

 दादाजी: मतलब सही क्या है गलत क्या है? ये पहचानने की शक्ति पावर नहीं रहती। वो रियलिटी नहीं देखते वास्तविकता से दूर हो जाते है। हमारी क्या स्थिति है मतलब सिचुएशन है हमारे पास वो पाने की, लेने की क्षमता कैपेसिटी है या नहीं? हम सब भूल जाते है।  उस वस्तु को कैसे भी  गलत तरीके से भी लेने की सोचते है, जो मना करता है या समझाता है, उससे गलत बात बोलते हैं, झगडा करते है। और किसी की बात नहीं सुनते और भगवान श्लोक के अंत में कहते है इस तरह बुद्धि विवेक शक्ति नष्ट होने पर इंसान का पतन हो जाता है। मतलब हमारा बहुत नुकसान हो जाता है।"

राहुल (सोचते हुए): दादाजी ये क्रोध एंगर तो बडा डैंजरस मतलब खतरनाक है। मुझे तो बहुत आदत है छोटी छोटी बात पर गुस्सा करने की।

दादाजी: हाँ बेटा! और जब हम छोटी-छोटी बातों में बार-बार गुस्सा करते हैं तो ये हमारी आदत बन जाती है। हम गलत बोलते हैं, लडते हैं और गुस्से में हाथ भी उठा देते हैं। क्रोध बहुत खतरनाक होता है और क्रोध के कारण हम बहुत सी गलतियाँ कर बैठते है जिसकी वजह से हमें बाद में पछताना पडता है।

राहुल :तो दादाजी इसलिए हमें स्थिर बुद्धि बनने की कोशिश करनी चाहिए।

दादाजी: हाँ बेटा छोटे-छोटे विश वांट पर सोच समझ कर कंट्रोल करके ही हम स्थिर बुद्धि वाले बन सकते हैं।

राहुल: अगर आसक्ति पर इच्छाओं पर नियंत्रण होगा तो  क्रोध का आगमन नहीं होगा, सही ना   दादाजी: हाँ अभी धीरे धीरे तू मेरी भाषा बोलने लगा और मैं तेरी दादाजी हँसते है ।

 हाँ दादा जी  आपका कथन पूर्ण सत्य है  राहुल हँसता है और  शुभ रात्रि कहता है

दादाजी: शुभ रात्रि, मेरे ज्ञानी बालक!

 

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