कहानी: तेरह" व्यक्तित्व का निखार"
राहुल एक किताब पढ़ रहा था उसमें लिखा था "क़ाबिल बनो, कामयाबी अपने आप पीछे आ जाएगी।"
राहुल (उत्साहित होकर): अरे! यही
बात तो दादाजी ने कल गीता में बताई थी! मेहनत करो, फल की
चिंता मत करो।
वाह! ये तो मैं दादाजी को
ज़रूर बताऊँगा !
राहुल शाम को दादाजी के पास आता है।)
राहुल: दादाजी दादाजी!देखिए इस किताब में क्या लिखा
है— "क़ाबिल बनो, कामयाबी अपने आप पीछे आ जाएगी।" यही
तो आपने कल गीता में सिखाया था ना?
दादाजी (मुस्कुराते हुए): बिलकुल सही
पहचाना राहुल! गीता का ज्ञान हमें हर जगह
मिल सकता है ।
राहुल (उत्सुकता से): तो दादाजी, आज गीता
में कौन-सा ज्ञान देने वाले हैं आप?
दादाजी: पहले ये बताओ, पिछली
कहानी से तुमने क्या सीखा?
राहुल: यही सीखा कि हमें अपने को नॉर्मल से स्पेशल
बनाना है तो बस मेहनत करनी है — अपना कर्म करना है।
फल मिलेगा या नहीं, कोई हमारी प्रशंसा करेगा या नहीं — इन बातों की उम्मीद नहीं रखनी है । बस कर्म करते
रहना है।
दादाजी (गर्व से): बहुत
बढ़िया! आज भगवान श्रीकृष्ण हमें व्यक्तित्व निखार का मंत्र सिखाने वाले हैं —
मतलब पर्सनैलिटी डेवेलपमेंट का।
राहुल (आश्चर्य से): क्या
दादाजी? गीता में पर्सनैलिटी डेवेलपमेंट?
दादाजी (मुस्कुराकर): हाँ बेटे।? गीता
में पर्सनैलिटी डेवेलपमेंट भी है । भगवान कहते हैं — जो व्यक्ति हर परिस्थिति में
समान रहता है...
सुख-दुख, हार-जीत, लाभ-हानि
— सब में एक जैसा। कभी निराश नहीं रहता हमेशा ऊर्जा से भरा रहता है और सैटिस्फाइड भी रहता है।
ऐसा व्यक्ति स्थित प्रज्ञ होता है।
राहुल: दादाजी, आपने एक
शब्द कहा — स्थितप्रज्ञ, उसे समझाइए वो क्या होता है?
दादाजी: स्थितप्रज्ञ मतलब — जिसकी प्रज्ञा यानी
बुद्धि intelligence. स्थिर होती है, डगमगाती
नहीं है।
जो सही निर्णय लेने में सक्षम होता है, वो
व्यक्ति हर परिस्थिति में शांत और संतुष्ट रहता है। और सफलता का अहंकार भी नही करता वही होता है स्थितप्रज्ञ।
राहुल (आश्चर्य से): दादाजी, क्या
ऐसा व्यक्ति सच में होता है? कहाँ मिलता है ऐसा व्यक्ति?
दादाजी (हँसते हुए): यही सवाल
अर्जुन ने भी भगवान से पूछा था!
चलो, अब साथ में श्लोक दोहराते हैं —
अर्जुन उवाच:
स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव।
स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्।।54।।
अर्जुन ने कहा हे केशव ! स्थित बुद्धिवाले मनुष्य के क्या लक्षण होते हैं? वह स्थिर बुद्धिवाला मनुष्य कैसे बोलता है, कैसे बैठता है और कैसे चलता है?
राहुल (आश्चर्य से): क्या
दादाजी! अर्जुन ये सब भगवान से पूछते हैं?
दादाजी: हाँ बेटे। अगर हमें किसी को पहचानना है, जानना है तो पहले उसके व्यक्तित्व मतलब उसकी पर्सनैलिटी को देखकर ही जानेंगें न।
राहुल (सोचते हुए): सही कहा
दादाजी! जैसे अगर हमें जानना हो कि कोई अमीर है या नहीं, तो हम
उसके कपड़े, उसके मोबाइल, घड़ी,
गाड़ी वगैरह से अंदाज़ा लगाते हैं।
दादाजी: लेकिन आजकल ये सब तो सबके पास है। तो कोई धनवान है अच्छे परिवार का है ये जानने के
लिए हम क्या देखते हैं हम उसके हावभाव देखते हैं यानी उसके शरीर की भाषा से पहचानते हैं ।
राहुल: दादाजी शरीर की भाषा मतलब उसके जैस्चर पोस्चर से मतलब उसके उठने-बैठने के तरीके से पहचानते हैं? ऐसा क्या दादाजी?, किसी के चलने-फिरने, बैठने-उठने से उसकी पहचान होती है?
दादाजी: बिलकुल। देखो, जो लोग एक्टिव होते हैं,
उनकी चाल में जोश होता है। और जो आलसी होते हैं, वो सुस्त चलते हैं।
राहुल: हाँ दादाजी मैने पढा है गाँधी
जी बहुत तेज चलते थे—
तो दादाजी, हमारी चाल में भी हमारी पर्सनैलिटी झलकती
है?
दादाजी: सिर्फ चाल ही नहीं बेटा, बात करने के तरीके से भी। कोई व्यक्ति शिक्षित है या नहीं, संस्कारी है या नहीं — यह उसकी भाषा से पता चलता उसकी बोलने की स्पीड कैसी है से, बोलने की नरमी से उसकी विनम्रता से उसकी भाषा के शब्दों से पता चल जाता है कि
कोई कितना एड्युकेटिड है
संस्कारी मतलब वैल कलचर्ड है।
राहुल: मतलब अगर कोई कठिन शब्द बोलता है तो वो पढ़ा-लिखा है?
दादाजी (हँसते हुए): नहीं बेटे! अच्छी भाषा वो होती है जो सरल हो, मधुर हो, और सबको अच्छी लगे। स्पष्ट रूप से क्लीयर बोले। हमें बातचीत करने में गुस्सा, जल्दबाजी ये सब नहीं करना चाहिए।
राहुल (समझते हुए): ओह! मतलब
हमारी बोली ही हमारे व्यक्तित्व की पहचान है।
दादाजी: बिलकुल बेटा। एक कहावत है —
"अच्छे कपड़े पहने हुए मूर्ख की पहचान नहीं होती, जब तक कि वो बोलता नहीं है!" लेकिन जैसे ही वह अपना मुँह
खोलता है मतलब बोलता
है, वह
पहचाना जाता है इसलिए
सोच-समझ कर बोलना चाहिए।
राहुल: दादाजी और ये जो भगवान ने बोला उठना बैठना ये कैसे करना है।
दादाजी: बहुत अच्छा सवाल। इसका अर्थ है — सभ्यता से मैनर से बैठना।
जैसे कुर्सी खींचने के बजाय उसे उठाकर रखना, ज़ोर
से कूदकर नहीं बैठना।
जब बड़े बच्चे ऐसा करते हैं, तो लोग कहते हैं
— "बिलकुल नासमझ बच्चा है!" है ना
(दादाजी शरारत से राहुल को देखते हैं)
राहुल (हँसते हुए): ठीक है
दादाजी, अब से मैं ध्यान रखूँगा।
दादाजी: हमे जमीन पर सुखासन में मतलब आलथी पालथी मारकर क्रोसलैग करके बैठने की भी आदत होनी चाहिए। झुक कर बैठना या खडे होना भी हमारे व्यक्तित्व को बेकार करता है। सीधा खडा और सीधे बिना कमर झुकाए बैठना चाहिए। अगर हम इनका ध्यान रखेंगें तो हमारे व्यक्तित्व का निखार होगा मतलब व्यक्तित्व का विकास होगा।
ये सब तरीके हमारे व्यक्तित्व को संवारते हैं।
राहुल: मतलब — पर्सनलिटी डेवेलपमेंट कराते हैं?
दादाजी: बिलकुल!, वैसे राहुल बेटा अर्जुन ये जो
प्रश्न पूछ
रहे हैं। इनका
एक दूसरा
दार्शनिक अर्थ एक गहरा डीप मीनिंग अर्थ भी है।
राहुल: (उत्साह से): वो
क्या दादाजी ?
दादाजी: अर्जुन जब पूछते
हैं "वह कैसे बैठता है" — इसका गहरा
अर्थ है कि वह स्थित प्रज्ञ मतलब steady
wisdom, वाला व्यक्ति अपने खाली समय का उपयोग कैसे करता है। कोई अच्छा काम
या सिर्फ टाइमपास करता है?
क्या वह उस समय भगवान का ध्यान करता है, कुछ
अच्छा पढ़ता है, राहुल हमें अपने खाली समय का उपयोग कोई गुण
टैलेंट सीखनें मे या कुछ अच्छा करने में लगाना चाहिए ।जैसे तुम मेरे पास आकर गीता
की कहानी सुनकर समय का सही उपयोग कर रहे हो ।
राहुल (थोड़ा गर्व से): तो जैसे
मैं आपके साथ बैठकर गीता सुनकर समय का सही उपयोग करता हूँ।
तो दादाजी क्या मैं स्थित प्रज्ञ मतलब
steady wisdom, वाला हो गया ।
दादाजी: उसके लिए अभी बहुत कुछ सीखना है बेटा जी परंतु
तुम धीरे-धीरे स्थितप्रज्ञ बनने की दिशा में बढ़ रहे हो। तुम
सही रास्ते पर हो।
राहुल: और "कैसे चलता है" — उसका क्या गहरा मतलब है?
दादाजी: इसका अर्थ है — वह अपने जीवन में कैसे व्यवहार करता है।
वह किसी ग़लत बात पर कैसा रिएक्शन देता है? हमारा व्यक्तित्व हमारे धैर्य पर निर्भर करता है हम किसी
परेशानी में या किसी गलत बात पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं और कैसे अपने धैर्य
और सूझबूझ के साथ उसे सुलझाते हैं इस पर बहुत निर्भर करता
है और यही हमारे अच्छे व्यक्तित्व को दर्शाता है।
राहुल: तो दादा जी हमें अपनी बुद्धि से स्थिर होकर निर्णय लेना
चाहिए तब बनेंगें हम स्थित प्रज्ञ
दादाजी: हाँ राहुल और भगवान अर्जुन को अगले श्लोक में बताते हैं कि स्थित प्रज्ञ व्यक्ति कैसा होता है इसे कविता रूप में सुनो
दुख
मिल जाए चाहे कितना, दुख से नहीं घबराता।
सुख
यदि अधिक आ जाए, अहंकार नहीं घर बनाता।।
काम,
क्रोध, लोभ मोह, उसके हृदय में नहीं बसता।
शुभ
होगा या अशुभ होगा, कभी डर ये
नहीं लगता।।
राहुल (कुछ सोचकर): मतलब दादाजी, स्थितप्रज्ञ
होना आसान नहीं है?
दादाजी
(मुस्कुराकर): आसान तो नहीं है बेटा, लेकिन
असंभव भी नहीं है।
भगवान कहते हैं — यह एक साधना है। सही सोच और अच्छा व्यवहार हमें उस दिशा में ले जाता है।
राहुल (आँखों में चमक
के साथ):
दादाजी, अच्छे व्यक्तित्व के लिए अब मैं भीअपने
— बोलने में, बैठने में, चलने में,
सोचने में… सब में ध्यान रखूँगा। और साथ साथ
धैर्य, समझ और शांत मन से काम करूँगा। शायद मैं भी
बन जाऊँ स्थितप्रज्ञ
दादाजी:हाँ राहुल लगातार गीता पढ़कर सुनकर हमारा मन बुद्धि चित्त
ये सब समझदार और शांत रहने लगते है। फिर हम जरूर बनते हैं स्थितप्रज्ञ
और यही गीता का उद्देश्य है —हमारे व्यक्तित्व का निखार और अंतरात्मा
का विकास।
दादाजी जमहाई लेने लगते है
राहुल: दादाजी आपको नींद आ रही है न अब।
दादाजी: हाँ, तो चलिए बेटा जी अब गुड नाइट कहिए और अब सोने में अपनी
बुद्धि को स्थिर करिए
राहुल चला जाता है अपने कमरे में सोने।
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