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Showing posts from June, 2025

कहानी 14: क्रोध आने का कारण

कहानी 14: क्रोध आने का कारण शाम का समय है। राहुल गुस्से से अपने कमरे में टहल रहा है।और स्वयं से ही बात कर रहा है। राहुल (झुंझलाते हुए): ! पापा से कितनी बार कहा था कि मॉल ले चलो , पर हर बार कोई न कोई बहाना! सब दोस्त जा चुके हैं , बस मैं ही नहीं गया! ( तभी दादाजी की आवाज आती है) दादाजी: राहुल , कहाँ हो बेटा ? अब तक आए नहीं ? मैं इंतज़ार कर रहा हूँ। राहुल (तेज़ आवाज में): आया दादाजी! बस बैग पैक कर रहा हूँ… दो मिनट! ( राहुल जल्दी जल्दी बैग पैक करके दादाजी के कमरे में आता है) दादाजी (मुस्कराते हुए): राहुल बेटा। बताओ तो , स्थितप्रज्ञ बनने की कोशिश हो रही है या नहीं ? राहुल (भौंहे चढ़ाते हुए): कहाँ दादाजी! मुझे तो उल्टा पापा पर गुस्सा आ रहा है। तीन दिन से मॉल चलने का कह रहा हूँ , और हर बार... “ऑफिस का काम!” या कोई दूसरा काम बस माल जाने का समय नही है पापा के पास। देखिए ना, सब दोस्त घूम कर आ चुके वहाँ , मैं ही नहीं गया मैं ही रह गया हूँ! दादाजी: बेटा , पापा को ज़रूरी काम रहा होगा। मॉल कहीं भाग तो जा नहीं रहा , दो- तीन दिन में चले जाना। जब पापा के पास समय होगा। राहुल (झुंझलाकर): हाँ हाँ ,...

Story 14: Why Do We Get Angry?

  Story 14: Why Do We Get Angry? It is evening. Rahul is walking around his room angrily, talking to himself. Rahul (frustrated): I’ve told Papa so many times to take me to the mall! But every time he gives an excuse! All my friends have gone, and I’m the only one who hasn’t! (Just then, Dadaji’s voice is heard.) Dadaji: Rahul, where are you, son? You haven’t come yet? I’ve been waiting for you. Rahul (loudly): Coming, Dadaji! I’m just packing my bag… two minutes! (Rahul quickly packs his bag and goes to Dadaji’s room.) Dadaji (smiling): So , Rahul, are you trying to become calm and steady,  Sthitha prajna ? Rahul (frowning): Not at all, Dadaji! I’m actually feeling angry with Papa. I’ve been asking him for three days to take me to the mall, and every time he says, “Office work!” or some other work. He just never has time for the mall. All my friends have already been there. I’m the only one left! Dadaji: Rahul, Papa must have some important work. The m...

ग़ज़ल कभी तो वो मेरे दिल के छिपे अरमान समझेगा

ग़ज़ल   12211222-1222-1222-1222 क़ाफ़िया = ' आन ' की बंदिश रदीफ़ = समझेगा   1. कभी तो वो मेरे दिल के छिपे अरमान समझेगा।   पढ़ेगा नैन वो मेरे मेरी मुस्कान समझेगा।।   2. नहीं ख़्वाहिश दिला दे वो हीरे मोती वाले गहने ।   है छोटी सी यही चाहत मुझे बस जा न समझेगा।।   3. नदी बोली बड़ा मुश्किल मिटा के खुद को मिल जाना।   समंदर भी कभी मेरा किया बलिदान समझेगा। ।   4. हवा के तीखे वारों से उड़ा बादल छिपा जाकर।     कहे अंबर बरस पगले इसे तूफ़ान समझेगा।।   5. बिना उम्मीद के चाहा जिगर का टुकड़ा माने हम।     नहीं मालूम था    मुझको   इसे एहसान समझेगा।।   6. लुभाने वाली सब बातें नकारी जब मैंने उठकर।   भरी महफ़िल हमें धरती   का वो शैता न समझेगा।।   7. बिता दी ज़िन्दगी आधी यहीं परदेश में यारों।   कभी सोचा नहीं था ये हमें मेहमान समझेगा।।   8. म...