Skip to main content

गज़ल (आप जब से हमारे सनम हो गए)

 212 212 212 212

आप जब से हमारे सनम हो गए,

सच बताऊँ बड़े बेरहम हो गए।

देखते ही नहीं अब उठा के नज़र,

क्यों बताओ न इतने सितम हो गये।

पूछते थे कभी चाहिये चाँद क्या ?

माँग ली एक साडी गरम हो गये।

थाम कर हाथ कहते थे ओ मल्लिका,

 आज बरतन हाथों के रतन हो गये।

दौड आते पुकारा जो हमने कभी,

क्या कदम होठ खुलने भी कम हो गये ।

प्रेम करती रहेगी सनम शालिनी,

भूल की भी नहीं पर ज़ुलम हो गये।

शालिनी गर्ग

Comments