212 212 212 212 आप जब से हमारे सनम हो गए, सच बताऊँ बड़े बेरहम हो गए। देखते ही नहीं अब उठा के नज़र, क्यों बताओ न इतने सितम हो गये। पूछते थे कभी चाहिये चाँद क्या ? माँग ली एक साडी गरम हो गये। थाम कर हाथ कहते थे ओ मल्लिका, आज बरतन हाथों के रतन हो गये। दौड आते पुकारा जो हमने कभी, क्या कदम होठ खुलने भी कम हो गये । प्रेम करती रहेगी सनम शालिनी, भूल की भी नहीं पर ज़ुलम हो गये। शालिनी गर्ग
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