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कहानी ग्यारह: "नोर्मल से स्पेशल बनने का मंत्र"


 कहानी ग्यारह: "नोर्मल से स्पेशल बनने का मंत्र"

राहुल स्कूल से घर लौटा है। उदास है। उसकी आँखों में मायूसी है। दादाजी पास बैठकर अख़बार पढ़ रहे हैं।

दादाजी (धीरे से मुस्कराकर): राहुल बेटा, आज तेरी चहकती आवाज़ नहीं सुनाई दी... सब ठीक है?

राहुल (धीरे से): हाँ दादाजी... (चलते चलते थोडा रुककर) बस... आज स्कूल में गणित के मार्क्स मिले, 8 नम्बर कम आए हैं । इतने कम नम्बर आए दादाजी मुझे विश्वास नहीं हो रहा, कि मैं इतनी गलती कैसे कर सकता हूँ । वो भी गणित में।

दादाजी: बेटा तुम्हे वे सवाल करने आते थे ना ?

राहुल: हाँ दादाजी कैलकुलेशन करने में गलती हो गई। पर इतनी गलती कैसे, मुझे समझ नहीं आ रहा ।

दादाजी: बेटा कभी कभी हो जाता है। अभ्यास मतलब प्रैक्टिस की कमी है , कोई बात नहीं बेटा। अब से रोज़ थोड़ा-थोड़ा समय निकाल कर मेरे पास आ जाना… अपनी गणित की किताब लाना… मैं तुम्हे रोज़ सवाल दूँगा… और तुम रोज़ अभ्यास करना । फिर देखो, कोई गलती नहीं होगी।

चलो  राहुल अब मुस्कुराओ और आज रात को  मैं गीता में से तुम्हे बहुत अच्छा एक मंत्र दूँगा ।

राहुल: क्या दादाजी ऐसा मंत्र है, जिसको जपकर मैं अच्छे मार्कस ले आऊँ ?  दादाजी: नहीं राहुल, अब वो सब मैं तुम्हे रात को बताऊँगा अभी तुम खाना खाकर आराम करो।

राहुल रात को समय होने पर  दादाजी के पास आता है

राहुल (चुपचाप बैठते हुए): दादाजी, आज वीडियो नहीं बनाते, आप ऐसे ही समझा दीजिए  ।

दादाजी: अरे आज तो वीडियो बहुत जरूरी है । मैं मंत्र जो देने वाला हूँ ।

राहुल (धीरे से मुस्कराते हुए): ठीक है दादाजी…

[दादाजी गीता उठाते हैं, तो चलो राहुल मेरे साथ ये श्लोक पढ़ो-

दोनो श्लोक पढ़ते हैं]

"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥"
(भगवद्गीता 2.47)

राहुल (धीरे-धीरे दोहराता है):
 
कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन |
   मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोSस्त्वकर्मणि || ४७ ||

दादाजी: इस श्लोक में चार बातें कही गई हैं, ध्यान से सुनो:

पहली है  "कर्मण्येवाधिकारस्ते"। तुम्हें अपने कर्म (कर्तव्य) करने का अधिकार है मतलब तुम्हे केवल अपना कर्म करना है । अपना कर्म कर्तव्य करना ही तुम्हारा धर्म है। यानी तुम्हे अपना काम – जैसे पढ़ाई – पूरी मेहनत और ईमानदारी से करनी है।

दूसरी: "मा फलेषु कदाचन"लेकिन कर्म के फल पर तुम्हारा अधिकार नहीं है।

दादाजी (हँसते हुए पूछते हैं) राहुल, फल का मतलब पता है न?

राहुल (मुस्कराकर): हाँ दादाजी, रिज़ल्ट!

दादाजी (हँसते हुए): हाँ बेटा इसका अर्थ हुआ जो भी तुम्हे कर्म करने का फल परिणाम मिला है, वो तुम्हारे कंट्रोल में नही है। तो बेटा, रिज़ल्ट सोच-सोचकर परेशान मत हो। जो मिला, उसे स्वीकारो, आगे और अच्छा करो।

राहुल: तो दादाजी, क्या मुझे अपने मार्क्स की चिंता नहीं करनी चाहिए?

दादाजी: बेटा, चिंता नहीं करनी… सिर्फ मेहनत करनी है। आज हम श्लोक की पहली दो पंक्तियाँ ही समझते हैं।

राहुल: दादाजी, प्लीज़ मुझे आसान भाषा में समझाइएगा।

दादाजी (धीरे-धीरे समझाते हैं): भगवान कह रहे हैं – अपना काम मन लगाकर मेहनत से पूरे आत्मविश्वास के साथ करना है ।

 जैसे तुम्हारा मतलब  विद्यार्थी का धर्म है पढ़ाई करना। तो तुम्हे क्या करना है?  मन लगाकर मेहनत से पूरे आत्मविश्वास के साथ पढ़ाई करनी है,  समझकर, बार-बार दोहराकर याद करना है, होमवर्क ध्यान से करना है।  लेकिन ये सोचे बिना कि अगर अच्छे नंबर आए, तो मम्मी-पापा खुश होंगे, टीचर तारीफ़ करेगी…और अगर कम आए, तो सब दुखी होंगे…

राहुल (थोड़ा उलझन में[SG1] ): मतलब... मैं अच्छा पढ़ूँ... लेकिन ये भी न सोचूँ कि सब खुश होंगे? मेरा कक्षा में नाम होगा।

दादाजी (मुस्कराकर) नही समझे न, तभी तो गीता हमारी सोच बदलती है बेटे, हमें साधारण से असाधारण बनाती है

राहुल (उत्साहित होकर): ओह! मतलब गीता हमें नॉर्मल से स्पेशल बनाती है!

दादाजी (गर्व से):बिलकुल सही कहा बेटे! यही है आज का मंत्र नोर्मल से  स्पेशल बनने का मंत्र! जब तुम बिना डर और उम्मीद के काम करते हो, तो तुम "नॉर्मल" से स्पेशल बनते हो।

दादाजी (मुस्कराकर): देखो, जैसे पेड़ फल देता है — चाहे कोई खाए या न खाए…नदी पानी बहाती रहती है — चाहे कोई पिए या न पिए…
ये सब बस अपना कर्म करते हैं।

राहुल: पर दादाजी, पेड़, नदी, पहाड़, सूरज, तारे... ये सब तो नॉन-लिविंग हैं। इनमें इमोशन्स नहीं होते। ये सोच नहीं सकते। इन्हें क्या पता खुशी क्या होती है और ग़म क्या होता है? ये क्या जाने क्या खुशी क्या गम।

दादाजी (शांत भाव से): ठीक है बेटा, तो चलो, इंसानों की बात करते हैं।
मम्मी-पापा को ही देख लो —मम्मी घर संभालती हैं, खाना बनाती हैं, तुम्हें पढ़ाती हैं…कोई तारीफ़ करे या न करे, वो अपना काम पूरी निष्ठा से करती हैं।पापा रोज़ ऑफिस जाते हैं, मेहनत करते हैं, हमारी ज़रूरतें पूरी करते हैं —बिना किसी उम्मीद के, बिना कोई शिकायत किए, अपना काम पूरा करते हैं ,पर बदले में कुछ नही चाहते ।

राहुल (सोचते हुए): हां दादाजी, लेकिन बिना परिणाम के काम करना… सोचिए, इंटरैस्ट कैसे आएगा?

दादाजी (हल्के हँसी के साथ): तुम्हारे ही अंदाज़ में समझाता हूँ।

जब तुम रील बनाते हो, अगर उस समय ये सोचते रहो कि “अच्छी बनेगी या बेकार?” तो तुम अच्छे से डायलॉग नहीं बोल पाओगे, ना फेस एक्सप्रेशन दे पाओगे। लेकिन अगर तुम बस इस पर ध्यान दो कि कहाँ पोज़ देना है, कैसे एक्शन लेना है, तो रील अपने आप अच्छी बनेगी — और जब अच्छी बनेगी, तो व्यूज़ भी अच्छे आएँगे।

राहुल (खुश होकर): हाँ दादाजी! यही बात तो मेरे फुटबॉल कोच भी कहते हैं —" राहुल सिर्फ बॉल को देखो, बाकी कुछ मत सोचो!"

दादाजी: बिलकुल! राहुल हमें अपना काम करते हुए बस ये सोचना है कि हम अपना काम कैसे बैस्ट करें जब काम अच्छा होगा तो अपने आप परिणाम अच्छा होगा।

राहुल: इसका मतलब, जो भी काम करूँ, उस समय सिर्फ उसी काम पर फोकस करूँ ,उस कार्य को अच्छे से करने का प्रयास करूँ । बाकी किसी और विषय के बारे में न सोचूँ ।

राहुल (थोड़ा सोचते हुए): पर दादाजी, काम खत्म होने के बाद तो परिणाम के बारे में सोच सकते हैं ना? तब तो कोई प्रोब्लम नही ना?

दादाजी (गंभीर होकर): बेटा, काम से पहले सिर्फ ये बातें सोचनी चाहिए —क्या ये काम सही उद्देश्य के लिए है ?
क्या ये काम भगवान को प्रिय होगा?
क्या इससे किसी का नुकसान तो नहीं होगा?

बस! काम शुरू करने से पहले यह सोचना ज़रूरी है। पर हम क्या करते हैं?
काम शुरू करने से पहले ही ये उम्मीद लगा लेते है, कि हमें इस काम से  क्या फायदा मिलेगा!

राहुल: फिर जब वैसा फायदा नहीं मिलता, तो हम दुखी हो जाते हैं…है ना दादाजी ।

दादाजी (सिर हिलाकर): बिलकुल! और इसी सोच में हमारी एनर्जी (ऊर्जा) बर्बाद होती है। जितना सोचा था उतना नहीं मिलता तो हम यही सोच सोचकर अपनी ऊर्जा और समय को वेस्ट करते हैं कि हमें जो सोचा था, उतना लाभ क्यों नहीं मिला ।

राहुल: दादाजी ऊर्जा मतलब एनर्जी सोचने से वेस्ट होती हैं ।

दादाजी: जैसे अब तुम सोच रहे हो —गणित में कम मार्क्स आए…”
लेकिन अब बस ये सोचना है कि आगे क्या सुधार करना है।

राहुल (सहमत होकर): हाँ दादाजी, आगे की तैयारी में लग जाना चाहिए।

दादाजी: हाँ राहुल,  हमें आगे के काम की तैयारी करनी है पीछे का जो बीत गया वो नही सोचना है। क्योंकि हमारी हमारी एनर्जी पुरानी बातो में यूज हो जाऐगी तो आगे के लिए कम शक्ति बचेगी। समझे ना ?

राहुल (धीरे से): पर दादाजी…कभी-कभी बहुत मेहनत करने के बाद भी रिज़ल्ट अच्छा न आए, तो सैड फीलिंग तो आती है ना…फिर मन नहीं करता दोबारा कोशिश करने का…

दादाजी (प्रेम से समझाते हुए): यही तो गीता सिखाती है बेटा!
कि हमारे रिज़ल्ट पर कई फैक्टर असर डालते हैं।

जैसे —अगर कोई दौड़ में भाग ले रहा है:

  • तो वह अच्छे जूते पहन सकता है,
  • आरामदायक कपड़े पहन सकता है,
  • प्रैक्टिस कर सकता है,
  • और कोच की मदद ले सकता है।

परन्तु —
मौसम कैसा होगा, दूसरे बच्चे कितनी तेज़ दौड़ेंगे — ये सब उसके कंट्रोल में नहीं हैं।

राहुल (समझते हुए): मतलब मुझे सिर्फ देखना है कि मैंने अपना अच्छे से दौड़ा या नहीं ।

दादाजी: बिलकुल बेटा! जैसी  प्रैक्टिस की वैसी जैसी दौड़ लगाई या नहीं? फिर इसके पश्चात अगर प्रथम आए तो बहुत अच्छा,नहीं आए तो क्या नुक़सान हुआ?

राहुल (हँसते हुए): हाँ दादाजी! क्योंकि परिणाम पर हमारा अधिकार नहीं है। हमें तो कर्म करना है।  और कोई भी सही कर्म करने से नुकसान तो नहीं होता — उल्टा हमें तो पता चलता है  कि हमारी स्ट्रेंथ कितनी  है! मैं कितने मिनट में कितना दौड़ सकता हूँ।

दादाजी (गर्व से): यही  आज का मंत्र है बेटा, अपने कर्म निष्ठा से करके  सही अभ्यास से हम खुद को पहले से बेहतर बनाते हैं। और ऐसे ही हम बनते हैं —नॉर्मल से स्पेशल।

राहुल (जोश से): वाह दादाजी! आज तो बहुत अच्छा ज्ञान मिला!
मैं आज से ही नॉर्मल से स्पेशल बनने की ओर बढ़ूँगा!

दादाजी (हँसते हुए): बहुत अच्छा बेटा! अब कल हम इस श्लोक की बाकी की दो लाइनें समझेंगे।

राहुल: जी दादाजी! और राहुल दादाजी को प्रणाम करके चला जाता है अपने कमरे की ओर।

 


 [SG1]

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