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कहानी नौ सुख-दुख क्या है?

 कहानी नौ सुख-दुख क्या है?

कल राहुल को फुटबोल खेलते हुए पैर में चोट लग गई थी। इसलिए वह स्कूल नहीं गया था। अभी चोट में दर्द हो रहा था और मन भी किसी काम में नही लग रहा था, इसलिए राहुल ने सोचा आज दादाजी के पास इस समय ही चला जाता हूँ।

दर्द से आह करता हुआ, लँगडाता हुआ राहुल दादाजी के पास आता है

राहुल (आह ऊह करता हुआ):
दादाजी... क्या आप मुझे अभी गीता सुना सकते हैं?

दादाजी (मुस्कुराते हुए):
हाँ बेटा, आओ बैठो, वीडियो ऑन करो।

(राहुल दर्द से आह ऊह कहता हुआ कैमरा सेट करता है)

दादाजी (हँसते हुए): अरे! आज हमारा शेर छोटी-सी चोट से बड़ा आह ऊह कर रहा है। ज्यादा दुख रहा है क्या?

राहुल: चोट है दादाजी, तो दुखेगा ना! पर होता है, होता है... जीवन में ये सुख-दुख तो आते रहते हैं।

दादाजी (चकित होकर):वाह! आज तो हमारा राहुल फिलॉसफर बन गया

राहुल:  दादाजी अब आप जल्दी से गीता सुनाइए,  शायद आपकी गीता मेरा दर्द सही कर दे

दादाजी: तो आज फिलोस्फर हमारे दार्शनिक राहुल ने सुख-दुख बोला है तो एक वही श्लोक बताता हूँ। जो सुख द-ख समझाने के लिए बहुत उपयोगी है।

पता है राहुल ये बहुत महत्वपूर्ण श्लोक आत्मा का ज्ञान देते समय रह भी गया था तो आज के इस श्लोक मे हम जानेंगें सुख-दुख क्या है और हमें सुख-दुख में क्या करना चाहिए तो मेरे साथ पढो अध्याय दो का चौहदवा श्लोक:

दादाजी और राहुल मिलकर पढ़ते हैं:
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।।१४।।

राहुल: दादाजी, क्या आप इसे कविता के रूप में भी सुना सकते हैं?

दादाजी: हाँ बेटा, सुनो:

(कविता स्वरूप):
जैसे सर्दी और गर्मी के, नित बदलते रहते हैं मौसम।
सुख-दुख भी आते-जाते हैं, कभी खुशी तो कभी है गम।।

राहुल (खुश होकर): इसका मतलब है सुख-दुख कुछ नहीं, ये तो जीवन के मौसम हैं! कभी धूप, कभी छाँव... पर चलते रहना ही असली ज़िंदगी है।

दादाजी: वाह भई वाह ! आज तो तू पूरा दार्शनिक बन गया! ये मेरी संगत का असर है या इस चोट का?

राहुल (हँसते हुए): शायद दोनों!

दादाजी: अब इसका अर्थ भी सुन लो। भगवान अर्जुन से कहते हैं:

हे कुन्तीपुत्र! सुख तथा दुख का आना सर्दी तथा गर्मी की ऋतुओं के आने जाने के समान है | हे भारत मतलब भरतवंशी ! ये सुख तथा दुख  इन्द्रियबोध से उत्पन्न होते हैं और मनुष्य को चाहिए कि अविचल भाव से उनको सहन करना सीखे।

राहुल: दादाजी, पहली लाइन तो समझ गई। लेकिन दूसरी पंक्ति उसका मतलब ठीक से समझ नहीं आया।

दादाजी: ठीक है राहुल, मै समझाता हूँ इसमें भगवान बता रहे हैं कि ये सुख और दुख है क्या? ... क्या तुम बता सकते हो? सुख-दुख क्या है ?

राहुल: जब लाइफ आराम से बिना टेंशन के चले, वो सुख। और जब ज़्यादा परेशानी हो जाए, वो दुख।

दादाजी: हाँ राहुल बहुत सही कहा, भगवान यही बताना चाहते हैं।

 पर राहुल सबके लिये ये सुख-दुख अलग अलग भी हो सकता है। जैसे हमें जो मौसम अच्छा लगता है वह सुख लगता है जो मौसम बेकार लगता है वह दुख लगता है। दूसरे के लिए इसका उल्टा भी हो सकता है

भगवान कहते हैं जब कोई चीज हमारे मन को अच्छी लगे हमारी इंद्रियों को जो अच्छा लगता है वह मनपसंद मिल जाए तो वो सुख है। और जब मन का न हो तो वो दुख है।

दादाजी ने हँसते हुए कहा जैसे किसी बच्चे के लिए स्कूल जाना सुख है ,और किसी के लिये स्कूल की छुट्टी करना सुख है।

राहुल (खीझते हुए) :  दादाजी मैने जानकर छुट्टी नहीं की है चोट लगी है मुझे।

दादाजी:  चल छोड दूसरा उदाहरण देता हूँ

तुम्हारे लिये पिज्जा, पास्ता खाना सुख है मेरे लिए दुख।

राहुल (हँसकर): हाँ दादाजी आपके लिए लौकी,तुरई खाना सुख है मेरे लिए दुख।

राहुल (थोड़ा गंभीर होकर): पर दादाजी, चोट लगना तो सबके लिए दुख है ना?

दादाजी: हाँ राहुल चोट लगना सब के लिए दुख है इसकी अंतिम लाईन में भगवान यही कहते है कि इसे सहन करना सीखो। अब हर किसी को कभी न कभी चोट लग जाती है हमें दर्द होता है इसके लिए हमने  इस पर पट्टी बाँध ली, दर्द कम करने की दवाई भी खा ली, पर जब दर्द कम नहीं होगा  तब हम केवल क्या कर सकते हैं दर्द को धैर्य से पेशेंश से सहन करना है मतलब टोलरेट करना है, कुछ दिन में ये चोट सही हो जाएगी तब सुख

तुम देखोगे सहन करते-करते तुम किसी और काम को करने मे लग जाओगे तो चोट का वही दर्द कम महसूस होगा

राहुल: मतलब दुख को टोलरेट करना है। और ध्यान बँटाकर किसी और काम में लग जाएँ, तो दर्द भी कम लगेगा।

दादाजी: बिलकुल बेटा! अपने विचार और कर्म से अगर हम अपनी इंद्रियों की दिशा बदल दें, तो दुख कम महसूस होता है सोच में पॉजिटिविटी लानी होगी। हम अपने अंदर सकारात्मक पोजिटिव दृष्टिकोण लायें तो हमें दुख को सहन करते हुए पता भी नहीं चलेगा की वह समय कब बीत गया ।

राहुल: तो दादाजी, सुख-दुख असल में हमारे सोचने के तरीक़े पर निर्भर करता है?

दादाजी: हाँ बेटे कुछ व्यक्ति जरा सा जीवन में बदलाव आया चेंज आया तो तो बेचैन हो जाते हैं यही सोचने लगते है, हमारे साथ ऐसा क्यों हुआ है । उनको सहन करने की कोशिश ही नहीं करते हैं। सारे सुख सुविधा होते हुये भी धैर्य और सहनशीलता न होने के कारण वे सुख में भी दुख महसूस करते हैं। अगर पूरे दिन में कोई एक चीज उनकी पसंद से नहीं हुई हो तो विचलित हो जाते हैं, क्रोधित हो जाते हैं या दुखी हो जाते हैं। और कुछ लोग विपरीत परिस्थितियों में भी मुस्कराते रहते हैं।

राहुल: जैसे सीता माता जंगल में रहकर भी खुश थीं?

दादाजी: हाँ बेटा ! वन में कुछ भी नहीं था उनके पास ,कोई सुख सुविधा नही थी सब काम स्वयं करती थीं ।तब भी सीता जी बहुत सुखी थीं। इसलिए मन की सोच पर हमारा सुख-दुख निर्भर करता है।

राहुल: दादाजी, क्या सुख को भी सहन करना आना चाहिए?

दादाजी: बहुत अच्छा सवाल पूछा बेटा। जब ज्यादा सुख होता है हमारा आलस्य बढता जाता है। यह हमारे स्वास्थ्य को तो खराब करता ही है साथ में हमारे अंदर अहंकार को जन्म देता है जिसकी वजह से हम अपने को बैस्ट समझने लगते हैं। और दूसरो को अपने से कम समझने लगते हैं। और कुछ ऐसे कार्य कर देते है जो दूसरों को दुख पहुचता है। इसलिए हमें सुख में भी अपने हर धर्म को मतलब कर्तव्य को निभाना है। सुख को सिर पर हावी नही होने देना है इसलिए हमें सुख को सहन करना भी आना चाहिए। क्योंकि हमें नही भूलना चाहिए सबके जीवन में सुख के बाद दुख आता ही है मौसम बदलता ही है ।

राहुल: मतलब जैसे मौसम बदलते हैं, वैसे ही सुख-दुख भी आते हैं। इसलिए हमें सुख में भी संयम और कर्तव्य ज़रूरी है।

दादाजी: हाँ बेटा। और राहुल ज्यादा सुख हमारी इच्छाओं को इतना ज्यादा बढा देता है कि वे पूरी नही हो पाती और जब वे इच्छायें पूरी नहीं होती तो हम अधिक सुख मिलने पर भी दुखी रहते है। तो हमें अपनी इच्छाओं को भी नियंत्रित करना है जो है उसमें आनंदित रहना है।

राहुल: दादाजी हमें सुख की वैल्यु भी तो दुःख आने पर पता चलती है दुख न आए तो कैसे पता चलेगा सुख का स्वाद क्या होता है?

दादाजी (प्रसन्न होकर):
वाह! बहुत सुंदर बात कही बेटा। इसको ऐसे भी कह सकते हैं -

जब तक दुख ना हो, सुख की कीमत कौन समझे?
और जब तक रात ना हो, सुबह का सूरज कैसे चमके?

राहुल: अंधकार में ही प्रकाश का महत्व पता चलता है।
और बारिश के बाद ही इंद्रधनुष आता है।

दादाजी: तो हमें जीवन के हर रंग को स्वीकार करना चाहिए। तभी जीवन इंद्रधनुष सा सु दर बनता है।

राहुल:धन्यवाद दादाजी, आपकी गीता ने तो आज मुझे दर्द सहने की नई शक्ति दे दी अब मैं अपनी पढाई चोट पर ध्यान दिए बिना कर लूँगा ।

(और राहुल वीडियो बंद करके चला जाता है अपने कमरे में अपनी पढ़ाई करने वो भी बिना आह ऊह किए )

 

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