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कहानी आठ आत्मा – एक अद्भुत आश्चर्य

कहानी आठ आत्मा – एक अद्भुत आश्चर्य

(राहुल को आज आत्मा के बारे में जानना था। बडा व्याकुल हो रहा था वह। उसे लग रहा था कि जल्दी से रात हो जाए और वह दादाजी से आत्मा के बारे में और बहुत कुछ जाने ।जैसे ही समय होता है, वह दौड़कर दादाजी के पास पहुँचता है।)

(दादाजी पुरानी फोटो एलबम देख रहे हैं)

राहुल: "अरे दादाजी! ये तो मेरी बचपन की फोटो है, है ना?"

दादाजी: "हाँ बेटा, देखो, ये तब की है जब तुम एक महीने के थे… और ये देखो, यहाँ तुम पाँच साल के गबदू मोटू से राहुल!"

राहुल (हँसते हुए): "ओहो, मैं सच में कितना गबदू दिख रहा हूँ!"

(दादाजी एक और पुरानी फोटो दिखाते हैं)

दादाजी: "और ये बताओ, ये फोटो किसकी है?"

राहुल (थोड़ा ध्यान से देखता है): "हम्म… ये बच्चे कौन हैं? 🤔"

दादाजी (मुस्कुराते हुए): "ये तुम्हारे पापा और चाचाजी हैं!"

राहुल (आश्चर्य से): "क्या! ये पापा और चाचाजी हैं? ये तो पहचान में ही नहीं आ रहे, दोनों एक जैसे दिख रहे हैं!"

दादाजी: "हाँ बेटा! जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हमारी शक्ल-सूरत बदलती रहती है। देखो, तुम भी इस फोटो में कितने अलग दिख रहे हो!"

 राहुल: "सच में दादाजी! हमारा शरीर बदलता रहता है!"

दादाजी: "बिल्कुल! हमारा शरीर बदलता रहता है, लेकिन आत्मा कभी नहीं बदलती। न ये बढ़ती है, न घटती है, ये हमेशा एक जैसी रहती है।  यही हमारे शरीर को बढ़ाने में मदद करती है!"

 राहुल (उत्साहित होकर): "वाह, दादाजी! मुझे और बताओ ना आत्मा के बारे में! आत्मा कैसी होती है? ये कैसी दिखती है? कितनी बड़ी होती है? कितनी भारी होती है?"

 दादाजी: "अरे राहुल, आज तुमने वीडियो ऑन ही नहीं किया!"

 राहुल: "अरे दादाजी, मैं तो भूल ही गया! " (राहुल जल्दी से वीडियो ऑन करता है)

दादाजी: "चलो, पहले मुझे ये बताओ, आत्मा किस-किस के पास होती है?"

राहुल: "दादाजी, सभी लीविंग थिंगस में  आत्मा होती है, जो चल सकते हैं, बोल सकते हैं!"

दादाजी: "हाँ सभी जीवो में आत्मा होती है! क्या जानवरों में आत्मा होती है?"

राहुल: "हाँ दादाजी!"

दादाजी: "और कीड़ों में?"

राहुल: "हाँ दादाजी!"

दादाजी: "और पेड़-पौधों में?"

राहुल (थोड़ा सोचकर): "दादाजी, ये बोल नहीं सकते, चल नहीं सकते… पर ग्रो तो करते हैं ना?"

दादाजी (मुस्कुराते हुए): "सही कहा, राहुल! और ये अपने जैसा दूसरा पौधा भी उत्पन्न कर सकते हैं!"

दादाजी: "अब बताओ, टीवी या कंप्यूटर में आत्मा होती है?"

राहुल: "नहीं दादाजी!"

दादाजी: "लेकिन ये तो बोल सकते हैं ना?"

राहुल: "हाँ दादाजी, लेकिन ये ग्रो नहीं करते और बिजली से चलते हैं।"

दादाजी: "बिल्कुल सही! हमारी आत्मा भी एक तरह से बिजली जैसी है, जो पूरे शरीर में चेतना मतलब (Energy) भेजती है!"

राहुल (आश्चर्य से): "ओह! तो आत्मा हमारे शरीर का पावर हाउस है!"

दादाजी: "बिल्कुल सही, राहुल!"

राहुल: "अब बताइए ना, आत्मा कैसी होती है?"

दादाजी: "भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि आत्मा को हम माइक्रोस्कोप में भी नही देख सकते हैं, न माप सकते हैं, न ही इसका कोई वज़न होता है।"

राहुल: "सच में? गीता में लिखा है?"

दादाजी: "हाँ, बेटा! गीता के दूसरे अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा के बारे में बहुत कुछ बताया है। चलो, मेरे साथ ये श्लोक दोहराओ—"

 (राहुल और दादाजी मिलकर गीता का श्लोक पढ़ते हैं…

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।

राहुल इसे तुम कविता रूप में भी गा सकते हो

    शस्त्रों से कट सकती नही, अग्नि से सकती जल।

वायु भी सुखा सकती नही, न भिगो सकता है जल।।

टुकड़े इसके हो नहीं सकते, न घोल सकता रसायन।

ये शाश्वत है, ये सर्वव्यापी, ये स्थिर है, ये सनातन।।

राहुल: "तो दादाजी, आत्मा को न काटा जा सकता है, जलाया जा सकता है, इसलिए भगवान कहते हैं कि आत्मा कभी नहीं मरती!"

 दादाजी: "बिल्कुल सही, बेटा! आत्मा सनातन होती है, यानी अमर। इसकी मृत्यु कभी नहीं हो सकती।"

 राहुल: "तो क्या हम आत्मा को कभी भी देख नहीं सकते?"

 दादाजी: "बेटा, पुराणों में लिखा है कि अगर तुम अपने बाल की नोंक के 100 टुकड़े करो, फिर उसमें से एक टुकड़े के फिर से 100 टुकड़े करो, तो जो दस हजारवां भाग बनेगा… वही है आत्मा का आकार!"

राहुल (आश्चर्य से): "इतनी छोटी!  फिर तो हम इसे देख ही नहीं सकते!"

दादाजी: "हाँ बेटा, आत्मा को देखा नहीं जा सकता, लेकिन ध्यान लगाकर महसूस किया जा सकता है।"

 राहुल: "तो दादाजी, आत्मा हमारी मृत्यु के बाद शरीर से निकल जाती है?"

 दादाजी: "हाँ बेटा, जब तक आत्मा शरीर में रहती है, हम जीवित रहते हैं। जैसे ही आत्मा निकलती है, शरीर मृत हो जाता है।"

राहुल: "लेकिन दादाजी, आत्मा शरीर से बाहर कैसे निकलती है?"

 दादाजी: "आत्मा कहीं से भी निकल सकती है। जैसे पसीना निकलता है, जैसे हवा शरीर से बाहर जाती है… वैसे ही आत्मा भी सुगंध की तरह निकलती है।"

 राहुल (हैरान होकर): "मतलब खुशबू की तरह हवा में घुल जाती है?"

दादाजी: "बिल्कुल बेटा! जैसे हवा में खुशबू होती है, जिससे हमें पता चलता है कि खुशबू अच्छी है या बुरीवैसे ही आत्मा के कर्मों की भी सुगंध होती है।"

राहुल: "मतलब अगर कोई अच्छे विचार, अच्छे कर्म करेगा तो उसकी आत्मा परफ्यूम जैसी महकेगी?"

 दादाजी: "हां बेटा! और अगर कोई बुरे कर्म करेगा, जैसे कौरवों ने किए थे, तो उसकी आत्मा

राहुल:  सड़ी हुई बदबू जैसी होगी!"

दादाजी:  इसलिए हमें अपनी आत्मा को अच्छे कर्मों और अच्छे गुणों से सुगंधित करना है।"

 राहुल: "तो दादाजी, जब आत्मा शरीर से निकल जाती है, तो क्या वो भगवान के पास जाती है?"

 दादाजी: "हाँ राहुल! फिर भगवान आत्मा का रिपोर्ट कार्ड देखते हैं, उसकी खुशबू सूँघकर उसके कर्म देखकर बताते हैं कि उसे गिफ्ट मिलेगा या सजा!"

"मतलब अगला जन्म कहाँ मिलेगा" अगर अच्छे कर्म किए हैं, तो अगला   जीवन अच्छा मिलेगा, और अगर बुरे कर्म किए हैं, तो दंड मिलेगा और किसी जानवर का शरीर भी मिल सकता है।"

राहुल (हैरानी से): "सच में दादाजी? ये सब होता है?"

दादाजी: "हाँ बेटा, यही भगवान ने पुराणों में बताया है।"

दादाजी: "अब और कुछ पूछना है, या आत्मा के बारे में सब समझ आ गया?"

राहुल (सोचते हुए, आँखें घुमाकर): "दादाजी, आत्मा एक मिरैकिल जादू है, है ना?"

दादाजी (मुस्कुराते हुए): "हाँ बेटा, और इसका स्टोरेज भी बहुत बड़ा होता है!"

राहुल: " कितने GB का स्टोरेज होता है?"

दादाजी: "GB? बेटा, आत्मा का स्टोरेज बीलियन-ट्रिलियन से भी ज्यादा होता है!"

राहुल: "तो फिर हमें अपने पिछले जन्मों की याद क्यों नहीं रहती?"

दादाजी: "क्योंकि हमारा नया शरीर सिर्फ इस जन्म का डाटा सेव करता है। इसलिए हमें पता नहीं चलता कि हमारे साथ जो हो रहा है, वो पिछले जन्म के कर्मों का परिणाम है।" और पिछले जन्मों में जो अच्छे कर्म किए हैं उसके अच्छे फल भी हमें इस जन्म में मिलते हैं।

राहुल: दादाजी फल मतलब आम सेब केला? अरे पगले नहीं, फल मतलब परिणाम।

दादाजी: " अच्छे कर्मों  का परिणाम  अच्छा जीवन, अच्छे लोग, अच्छी शिक्षा, धन-दौलत, सम्मान मिलता है!"

राहुल (मजाक में): "जैसे अमिताभ बच्चन कहते हैं— मेरे पास बंगला है, गाड़ी है, शोहरत है!"

दादाजी (हँसते हुए): "हाँ, बेटा! यही सब अच्छे कर्मों के अच्छे फल होते हैं!"

राहुल (मुस्कुराते हुए): "पर दादाजी, मेरे पास इन सब से बढ़कर एक चीज़ है!"

दादाजी: "क्या?"

राहुल: "मेरे प्यारे दादाजी!"

दादाजी (हँसते हुए): "और मेरे पास राहुल जैसा प्यारा बेटा!"

(दोनों हँसते हैं, और राहुल दादाजी को प्रणाम करके अपने कमरे में सोने चला जाता है!)


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