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सुबह की सैर के अजब दोस्त

  सुबह की सैर के अजब दोस्त सुबह की सैर की हुई शुरुआत , जब मीठी नींद को मारी लात। जोश भरा थोड़ा, फुर्ति के साथ , नए-नए दोस्तों से हुई मुलाकात। पहला दोस्त और जून महीना , टप-टप-टप बहता हाय पसीना! बिन बुलाए मेरे गले लग जाए , चेहरा क्या , पूरा बदन नहाए। कैसे मैं इससे पीछा छुड़ाऊँ , “ हाय पसीना!” मैं चिल्लाऊँ। अचानक मुझे ख्याल ये आया , दोस्ती का अब हाथ मिलाया। कहे वो , “ यार , मैं सदा था तेरा , ए.सी. ने था, बस तुझको घेरा। तूने आकर मुझे गले लगाया , ले, तेरा टॉक्सिन दूर भगाया। पसीने की दोस्ती भाने लगी , गर्वीली मुस्कान अब आने लगी। दूसरे दिन झाँकता दिखा रूमाल , बोला , “ प्लीज़ , देख , मुझे न टाल। सैर पर साथ मुझे भी ले चल , मेरी दोस्ती क्या? जानेगा ये कल। होती क्या यारी , मैं दिखाऊँगा , हर हाल में मैं , दोस्ती निभाऊँगा। शुरू होते ही सैर , मचाया धमाल , आया पसीना , झट पोंछा रूमाल। अरे रुक तो ज़रा , दोस्त है पसीना , रुमाल कहे , न ये पक्का कमीना! जब भी आएगा , इसे दूर भगाऊँगा , घटिया दोस्तों से, मुक्त कराऊँगा। साथ में उस मक्खी को भगाया , जिसने कभी...

Story 17: Who Is the Real Doer?

  Story 17: Who Is the Real Doer? (Scene: Rahul and Grandpa are walking in the garden.) Rahul (running happily): Grandpa! Look, look! I just dropped a mango seed in the garden, and now a tiny plant has come up! Isn’t it beautiful? Grandpa (smiling and bending down): Yes, my dear. This little plant is called a Papiha . Rahul (surprised): Papiha? Isn’t that the name of a bird? Grandpa (smiling): Yes, it is a bird. But when we were young, we used to call this small plant "Papiha" too. We would gently pull it out, rub one end, and blow into it to make a whistling sound — like a tiny flute! Maybe that’s why we called it Papiha . Rahul: Wow! Did you used to play with it, Grandpa? Grandpa (laughing): Yes, in our time, we didn’t have phones or TV. So, we used to play with these plants, eat neem fruits, brush with neem sticks, and swing from tree branches. These were our toys! It was fun, and we learned a lot too. Rahul: But Grandpa, didn’t you get hurt doing al...

कहानी 17: वास्तविक कर्ता कौन? भगवद गीता 3.27

  कहानी 17: वास्तविक कर्ता कौन ? ( दृश्य – बगीचे में राहुल और दादाजी टहल रहे हैं) राहुल (खुश होकर दौड़ते हुए) : दादाजी! देखिए देखिए… मैंने आम की गुठली क्यारी में डाली थी , वहाँ से एक नन्हा पौधा निकल आया! कितना सुंदर लग रहा है ना! दादाजी (मुस्कुराते हुए झुकते हैं) : हाँ बेटा , इसे पपीहा कहते हैं। राहुल (हैरान होकर) : पपीहा ? पपीहा तो पक्षी होता है ना ? दादाजी (मुस्कुराते हुए): हाँ बेटा , होता तो पक्षी है , हम तो इसको पपीहा ही कहते थे जब हम छोटे थे , हम इसे सावधानी से उखाड़कर इसका एक सिरा थोडा घिसकर उसमें फूँक मारकर उससे सीटी जैसी आवाज़ निकालते थे। जैसे बाजा हो! शायद इसलिए हम इसे पपीहा कहते होंगे। राहुल : दादाजी , आप भी बजाते थे ? दादाजी (हँसकर): हाँ हाँ, उस समय न मोबाइल था , न टीवी... तो ऐसे ही कभी पपीहा बजाते , कभी नीम की निंबोली खाते, कभी नीम की दातुन करते और पेडों की शाओं पर झूलते थे, शरारते करते रहते थे — ये सब हमारे खिलौने होते  थे। ऐसा करने से मजा तो आता ही था सीखने को भी बहुत कुछ मिलता था । राहुल दादाजी चोट भी तो लगती होगी । मैं तो ये सब शैतानी...

सीता जी का त्याग ”एक अनकही झलक”

  सीता जी का त्याग ”एक अनकही झलक” 212 212 212 212 राम जी से कहें एक दिन जानकी , नाथ मैं   आप से एक वर माँगती। आपका प्रेम मुझ पर सदा है अटल, बस इसी प्रेम का साक्ष्य हूँ चाहती।।1।।   यूँ निहारें सिया, राम जी एकटक, देख पी के नयन, झट झुके नैन पट। हाथ लेकर सिया का हृदय पर रखा, माँग लो जो न माँगा प्रिये आजतक।।2।।   आ रही है अवध में बडी शुभ घड़ी, आज आनंद की लग गई है झड़ी। और मेरी सिया आज माँगे है वर, बैठ कर सब कहो, कब से हो तुम खड़ी ।।3।।   जान भी माँग लो , दूँ अभी जानकी, ये वचन है दिया, ये शपथ राम की। गोद में रख के सर , अब पिया से कहें, कामना मैं रखूँ वन में इक धाम की।।4।।   वार दूँ साध्वी मैं अभी सारे वन, राजसी मैं बना दूँ सभी आश्रम। हर दिशा हर कदम , साथ दूँगा सदा, बस नहीं माँगना , आज कोई हिरन।।5।।   काँपते होंठ से , जानकी ने कहा, कुछ भीगे नयन कुछ गला था रुँधा। आपको त्यागना , होगा स्वामी मुझे, जो कहा था रजक ने , मुझे है पता।।6।।   सुन सिया के वचन, राम जी चौंकते, प्यार से गाल...