सुबह की सैर के अजब दोस्त सुबह की सैर की हुई शुरुआत , जब मीठी नींद को मारी लात। जोश भरा थोड़ा, फुर्ति के साथ , नए-नए दोस्तों से हुई मुलाकात। पहला दोस्त और जून महीना , टप-टप-टप बहता हाय पसीना! बिन बुलाए मेरे गले लग जाए , चेहरा क्या , पूरा बदन नहाए। कैसे मैं इससे पीछा छुड़ाऊँ , “ हाय पसीना!” मैं चिल्लाऊँ। अचानक मुझे ख्याल ये आया , दोस्ती का अब हाथ मिलाया। कहे वो , “ यार , मैं सदा था तेरा , ए.सी. ने था, बस तुझको घेरा। तूने आकर मुझे गले लगाया , ले, तेरा टॉक्सिन दूर भगाया। पसीने की दोस्ती भाने लगी , गर्वीली मुस्कान अब आने लगी। दूसरे दिन झाँकता दिखा रूमाल , बोला , “ प्लीज़ , देख , मुझे न टाल। सैर पर साथ मुझे भी ले चल , मेरी दोस्ती क्या? जानेगा ये कल। होती क्या यारी , मैं दिखाऊँगा , हर हाल में मैं , दोस्ती निभाऊँगा। शुरू होते ही सैर , मचाया धमाल , आया पसीना , झट पोंछा रूमाल। अरे रुक तो ज़रा , दोस्त है पसीना , रुमाल कहे , न ये पक्का कमीना! जब भी आएगा , इसे दूर भगाऊँगा , घटिया दोस्तों से, मुक्त कराऊँगा। साथ में उस मक्खी को भगाया , जिसने कभी...
Shalini Poetry
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