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पान की गिलौरी से पिया


 गीतिका छंद २१२२ २१२२ २१२2 २1२

पान की मीठी गिलौरी, से पिया हमको लगे,

देखते ही रंग धानी, प्रीत के सपने जगे।

जानते थे कत्था चूना भी मिलेगा साथ में,

चाबनी भी है सुपारी जो फँसेगी दाँत में।

हाय मधु गुलकंद सी मुस्कान पे हम क्युँ बिके,

रंग बदले प्रीत के अब, लाल ही बस पी दिखे।।

  

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