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मन पर मनहरण घनाक्षरी छंद मे एक शानदार कविता


 मन की ये मनमानी, जब भी मन ने मानी

मान नही बढता है, मान घट जाता है।

मन की माँगे मुरादे, मन यहाँ वहाँ भागे,

मन की लगाम कसो, मन सध जाता है।

मन का मनन करें, मन में विवेक भरें,

मन से संवाद करें , मन मान जाता है

मन जीत राह पाये,  मन हार पछताये

मन को जो समझाये, योगी बन जाता है

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