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गोपी गीत (हिंदी में)



 गोपी गीत (हिंदी में)

रचयिता शालिनी गर्ग

इंदिरा छंद 11121221212

ब्रज धरा हुआ, जन्म आपका,

ब्रज निवास बैकुंठ धाम सा।

मृदुल श्री प्रिया, आपकी रमा,

प्रभु यहीं करें, संग आपका ।।1.1।।

छिप गये कहाँ, साँवरे सखे,

चरण धूल में, प्राण हैं पड़े।

भटकती फिरें, नाथ दासियाँ।

पकड कान को, माँग माफियाँ।।1.2।।

हृदय में बसे, प्रेम से प्रिये,

कमल नैन से,घायल किये।

प्रभु कहो जरा,प्रीत क्या नहीं,

वध किया बिना,अस्त्र के यहीं।।2।।

असुर मारते, मारते रहे,

ब्रजधरा सदा, तारते रहे।  

रक्षक गोप के, आप ही रहे,

हँस दिये सदा, नाचते रहे।।3।।

तुम लला बने, मात के लिये,

चक्र उठा लिया, विश्व के लिये।

हृदय में सभी, जीव के बसे,

जगत ये चले, कृष्ण आप से।।4।।

तुम हरो हरिS, कामना सभी,

शरण पड़े जो, आपके कभी।

अभय देत हो, जन्म मृत्यु से,

जब रखो कृपा, हस्त शीश पे ।।5।।

दुख मिटा दिये, शांत श्याम ने,

मद चुरा लिये, प्रेम ज्ञान ने।

किशन रूठ के, ना सताइये,

नमन आपको, मान जाइये।।6।।

चरण आपके, पाप को हरें,

कमल वासिनी भी यहीं रहें।  

पग धरें कभी, नाग सर्प पे,

पद धरो अभी, तप्त चित्त पे।।7।।

मधुर बोल हैं, शब्द श्रेष्ठ हैं,

सुध भुला देत, मोह लेत हैं।

अमृत स्वर वो, सो गये कहाँ,

रस चखा दिये, खो गये कहाँ।।8।।

विरह में कहें, आपकी कथा,

कर रही हमें शांत ये सुधा।

श्रवण गान जो, आपका करे,

खुश रहे सदा, क्लेश ना रहे।।9।।

बहुत ही हमें, याद आ रही,

हर हँसी ठिठोली सता रही।

कपट चाल से, ही सताइये

निकट आइये ना जलाइये ।।10।।

चरण कंकरो संग घूमते,

बदन धूल के रंग चूमते।

छवि मनोहरी देखनी वही

पथ निहारती गोपियाँ यहीं।।11-12।।

मनन आपका जो सदा करे,

सुखद हर्ष से जिये व मरे।

पवन धरा से झूमके कहे,

मिलन आपसे श्री यहीं करें।।13।।

अधर वेणु को चूमते रहे,

मिलन गीत ये गूँजते रहे

तडप है उठे, होठ है सुखे,

रस पिये बिना,मोह ना छुटे।।14।।

दिन ना ढले, आपके बिना,

दरस ना दिखे, साँझ के बिना।

लट बिखेर के खेलते जभी,

मदन रूप पे रीझते तभी।।15.1।।

पलक क्यों जल्द बंद हो चली,

नयन पूँछते क्यों हमें मिली।।

तज दिये कुटुंबी सभी प्रिये,

मधुर तान के संग हो लिये ।।15-16।।

समझ आ गई चाल आपकी,

पर हमीं बनी जान बावरी।।

प्रबल प्रेम से देखते यहीं,

नयन बाण से छेडते यहीं।।16-17।।

किशन आप लीला रचा रहे,

जगत के सुखों को बढ़ा रहे।

हृदय लालसा, अग्न सी जले,

तपन शांत बूटी कहीं मिले।।18।।

कमल के पदों,से छिपे कहाँ,

चुभ गई यदि, कंकरी वहाँ।

तरस खाइये, माफ कीजिये।

मदन मोहना, दर्श दीजिये।।।19।।

रचयिता शालिनी गर्ग

दिनाँक 7.1.2022

 

 

 

 

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