घर घर की महाभारत
मम्मी
पापा तैयार खड़े थे, गृह क्षेत्र के मैदान में।
मम्मी का
रसोईक्षेत्र और पापा थे टीवी के सामने।।
दोनों ओर
से वाकयुद्ध तो, जैसे शुरू हो ही चुका था।
एक दूजे
के चुभते बाणों से, पूरा घर जग चुका था।।
दादी ने
भी चश्मा लगाकर ड्राइंग रूम में प्रवेश किया।
दादाजी
ने अखबार उठाकर, चाय पीना छोड़ दिया।।
मम्मी का
सारथी बन, बेटे ने रसोई संभाल ली थी ।
अपनी
सहयोग शक्ति सारी, मम्मी को सौंप दी थी।।
पापा
बोले दादा-दादी से, कोई बीच में नहीं बोलेगा।
प्रियबहू
का पक्ष लिया तो, मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।।
मम्मी
बोली बेटा मेरे जरा, किचन का दरवाजा खोलो।
मैंने
बेलन उठा लिया है, ड्राइंग में बस मेरे संग चलो।।
देखूँ तो
इनका साथ देने, के लिए कौन-कौन है खड़ा।
ऐसा कौन
है जिसको पंगा, लेने का शौक है चढ़ा।।
मम्मी ने
ड्राइंग में आकर, जब अपनी दिव्य दृष्टि उठाई।
सास, ससुर,
नंद ,देवर, लगता है सबकी शामत आई।।
बेटा
बोला निराश ना हो माँ, इनके पास अगर दादी हैं।
हमारे
पास भी तो अपनी तेजतर्रार पड़ोसवाली काकी हैं।।
वो पड़ोस
वाली काकी चुगली करने में बडी होशियार हैं।
और कृष्ण
रूपी बेटा आपका यहाँ रथ थामकर तैयार हैं।
लेकिन
मम्मी ने सामने जब, दुखी प्रियजनों को देखा।
प्यार दिया
था सबने कितना, आज ये कैसा आया मौका।।
आँखों
में आँसू भर लाई, हाथ से पकडा बेलन छूट गया।
लक्ष्मी
जो काली बनी थी उसका भयंकर रूप टूट गया।।
हे पुत्र ! अपनों से लडूँ मैं, मुझसे ये नहीं हो
पाएगा।
जिस बेलन
से रोटी बेली, वो बेलन नहीं उठ पाएगा।।
जो भी
कहेंगे जैसा कहेंगे, मैं चुपचाप सहन कर लूँगी।
मायके
चली जाऊँगी नहीं तो टीचर बन कहीं रह लूँगी।
बेटा
बोला हे माते! ये जो मायके का अभी मोह उठा है।
ये सब अज्ञान
का कारण है माँ, वहाँ कुछ नहीं रखा है ।।
टीचर
बनकर, माँ आप बताओ, कितने रुपए कमा लोगी ।
क्या
मुझको ढंग की कोचिंग में, एडमिशन दिलवा पाओगी।।
चाहे
लड़कर या झगडकर,चाहे नाटक कर या आँसू बहा कर।
चाहे प्रेम
का मक्खन लगाकर,चाहे तलाक की धमकी देकर।।
केवल
मम्मी तुम इतना करो, पापा को अपने वश में करो।
नहीं कर
सकती हो ये सब, तो युद्ध करने से अब नहीं डरो।।
युद्ध
करने से हे माते ! कुछ भी तो गलत नहीं होगा।
केवल
पापा के अहंकार के राक्षस का ही अंत होगा।।
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