अर्जुन की दुविधा
राहुल:
दादाजी, दादाजी! मुझे दोनों श्लोक याद हो गए।
दादाजी: वाह, राहुल बहुत बढ़िया!
अब जल्दी बताइए, आगे क्या होता है? दादाजी पता है, मुझे कल सपने में युद्ध दिखाई दिया था।
दादाजी: अभी से राहुल लेकिन अभी तो युद्ध शुरू भी नहीं हुआ
राहुल: हुआ नहीं तो आज हो जाएगा, आज आप करा देंगे ना युद्ध शुरू। तो दादाजी बताओ ना—क्या आज युद्ध शुरू हो जाएगा?
दादाजी: चलो, बैठो। अरे ध्यान से सुनकर तुम ही बताना कि युद्ध शुरू होगा या नहीं।
राहुल: दादा जी युद्ध नही तो वीडियो तो शुरू करें?
दादाजी, मैंने वीडियो ऑन कर दिया।
दादाजी:
ठीक है, राहुल। अब संजय बता रहे हैं कि युद्ध की शुरुआत से पहले दोनों सेनाओं की ओर से शंख बजाने शुरू हो गये है। पहले कौरवों की ओर से पितामह भीष्म ने शंख बजाया, फिर कृष्ण और पांडवों ने अपने-अपने शंख बजाए।
पता है राहुल इन सब योद्धाओं के अपने अलग-अलग शंख होते थे इनका विशेष नाम भी होता था
राहुल:
दादाजी, ये शंख किसी ब्रांडेड कंपनी की तरह होते होंगे?
दादाजी:
नहीं, राहुल। ये किसी ब्रांड के नहीं, बल्कि इनका अपना एक विशेष नाम होता है। जैसे—कृष्ण के शंख का नाम ‘पाञ्चजन्य’ है। जब यह बजता है, तो इसकी ध्वनि दूर-दूर तक गूंज उठती है, सागर की लहरें तेज हो जाती हैं और पर्वत भी कांपने लगते हैं।
राहुल:
(हँसते हुए) दादाजी, आप भी कभी-कभी कुछ ज्यादा ही बोल देते हैं!
दादाजी:
अरे राहुल, ऐसे ही होते हैं ये शंख।
राहुल:
दादाजी, पापा भी कभी-कभी पूजा में शंख बजाते हैं? वो क्यों? पूजा तो युद्ध नहीं है, है ना?
दादाजी:
पूजा-पाठ में शंख बजाना अत्यंत शुभ माना जाता है,बेटा। कहा जाता है कि भगवान और देवी-देवताओं को शंख की मधुर आवाज बहुत प्रिय होती है। साथ ही, शंख बजाने से नकारात्मक ऊर्जा negative energy भी दूर होती है।
राहुल:
तो फिर युद्ध में शंख बजाने का क्या अर्थ है?
दादाजी: इसका अर्थ है राहुल कि युद्ध धर्म के साथ मतलब नियमों के अनुसार लड़ा जाएगा । शंख के साथ-साथ ढोल, नगाड़े और बिगुल भी बजाए जाते हैं ताकि सभी योद्धा युद्ध के लिए एलर्ट हो जाएँ। और यह भी चेतावनी होती है कि घर में जो बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएँ हैं वे बाहर न निकलें।
राहुल:
अब शंख, ढोल और नगाड़ों के बजने के बाद तो अर्जुन युद्ध के लिए धनुष उठाकर शुरू हो
जाते होंगे ना अर्जुन धनुष चलाने का पोज करते हुए करता है दादाजी, क्या अर्जुन के धनुष का भी कोई विशेष नाम है?
दादाजी:
हाँ, बेटा। अर्जुन के धनुष का नाम ‘गांडिव’ है, इसलिए उन्हें ‘गांडिवधारी’ भी कहा जाता है।
राहुल इन योद्धाओं के अस्त्र-शस्त्र बहुत दिव्य होते थे
राहुल: दादाजी दिव्य मतलब मैजिकल
दादाजी: हाँ, एक्सटरा पावरफुल आज की ए आई टैकनीक से
भी ज्यादा शक्तिशाली थे।
दादाजी: तो अर्जुन अपना धनुष गांडिव उठा लेता है और भगवान कृष्ण से कहता है, “हे माधव, मेरा रथ युद्ध के बीचोबीच ले चलो, ताकि मैं एक बार देख सकूँ कि दुर्योधन के साथ कौरवों की सेना में कौन-कौन है?”
राहुल: तो भगवान कृष्ण रथ को ले जाते हैं दादाजी?
दादाजी: हाँ ......भगवान कृष्ण अर्जुन के सारथी हैं..... जहाँ अर्जुन
कहेंगें.... वहाँ रथ ले जाएँगे।
वे अर्जुन के रथ को युद्ध क्षेत्र के बीच में ले जाकर खड़ा कर देते हैं .......और कहते हैं, “अर्जुन, अपने पितामह, गुरु, संबंधी, भाई और मित्रों को ध्यान से देख लो, .....शायद इन्हें बाद में न देख पाओ।”
तो, जैसे ही अर्जुन नजर ऊपर उठाते हैं,..... क्या होता है पता है राहुल ?
राहुल: क्या अर्जुन मना कर देते हैं, दादाजी?
दादाजी: हाँ, राहुल। जैसे मूवी का सीन पलट जाता है यहाँ भी सीन
एकदम से बदल जाता है जो अर्जुन युद्ध करने के लिये बेचैन था दुर्योधन का मारने के
लिए उतावला था । अपने सामने सब अपने लोगो को देखकर घबरा जाता है ।
राहुल: घबरा जाता है........ मतलब क्या
दादाजी ।
दादाजी: मतलब उसे पसीना आने लगता है, उसके हाथ-पैर काँपने लगते हैं, मुँह सूखने लगता
है, चक्कर आने लगते है।
दादाजी: अर्जुन उनकी शक्ति से या सेना से नहीं डरते। बल्कि उन्हें इस बात का डर होता है कि वह अपने दादाजी, अपने पितामह को कैसे मार सकेंगे—ये
सब तो वही हैं जो अपनी गोद में बैठाकर खाना खिलाते, खेल-खिलाते और कभी खेल खिलाते हुए घोडा बन जाते थे, कभी डाँटते थे कभी
सिखाते थे ।
राहुल: जैसे आप मेरे
साथ करते हो दादाजी
दादाजी: हाँ
राहुल बिलकुल ऐसे ही। अर्जुन यही सोचते हैं और कहते हैं, “मैं अपने प्रिय दादाजी की हत्या कर दूँ । कैसे सकता हूँ? यदि वे मुझे मारे तो सही है, पर मैं अपने दादाजी पर बाण कैसे चलाऊँ?” और दादाजी के साथ में मेरे गुरु जो मुझे
अपना सबसे प्रिय शिष्य मानते हैं मैं उनको मारूँगा .......वे अपने मित्र और संबंधियों के बारे में भी यही सोचते हैं, जिनके साथ उन्होंने अपना बचपन बिताया था। आज ये सभी मेरे शत्रु हो गए ।
राहुल: हाँ दादाजी अर्जुन सही कह रहे है .......अर्जुन कैसे मार सकते
हैं अपने दादाजी को गुरु को मैं तो कभी ना मारूँ। ये युद्ध है खेल तो नहीं है कि
वे हार गये और हम पांडव जीत गये । ये सब एक बार मर गए तो दुबारा जिंदा तो नहीं
होंगे और हत्या करना तो सबसे बडा पाप है ना दादाजी
दादाजी: हाँ राहुल अर्जुन बिलकुल ऐसे ही कह रहे थे जैसे
तुम कह रहे हो कि मैं हत्या का पाप क्यों करूँ ।
यही सब बात अर्जुन कृष्ण
भगवान से कहते है ....मेरे दोस्त कृष्ण सुनो मुझे युद्ध करना उचित नहीं लगता। अगर
हमें राजपाठ मिल भी गया तो इतना रक्त बहा कर भाई युधिष्ठिर और हम खुश नहीं रह सकते
। इसलिए माधव मैं ये युद्ध नहीं कर पाऊँगा।
राहुल:दादाजी अर्जुन ने सही कहा, युद्घ करना सही नही होगा, वो
कैसे मारेगा अपने दादाजी को अपने गुरु को।
दादाजी: इसी दुविधा में अर्जुन फँस जाता है राहुल एक
तरफ उसके अपने रिश्तेदार हैं एक तरफ न्याय है धर्म है। यही तो गीता सिखाती है एक
राजा के लिए न्याय अधिक जरूरी है या अपने
संबंधी ।
बेटा। अब सोचो, यदि कोई देश हमारे देश पर आक्रमण अटैक कर दे और हमारे फौज का कर्नल भी मना कर दे कि मैं युद्ध नहीं करूँगा, तो क्या यह सही होगा? युद्ध के बीच पीछे हटना तो कायरता मानी जाती है ना?
राहुल:(गंभीर स्वर में) दादाजी, यही तो मुश्किल है, युद्ध के समय अर्जुन पीछे हटना चाहते हैं,
दादाजी: और पता है राहुल अर्जुन तो अभी रुकते ही नहीं भगवान कृष्ण को बोलने ही नहीं देते एक के बाद एक अनेक कारण बताने लगते है कि युद्ध करने का क्या-क्या नुकसान होगा।
अर्जुन कहते है युद्ध से केवल संबंधी ही नही मरेंगें बल्कि इतने सारे सैनिक वो भी दोनो सेनाओं के मरेंगें। इतने सारे बच्चे अनाथ हो जाएँगे । स्त्रियाँ विधवा हो जाएँगी। बडे-बूढ़े अपने जवान बच्चों को खो देंगें । चारो तरफ मृत्यु ही मृत्यु होगी। सारा धन भी खत्म हो जाएगा ,निर्धनता गरीबी बढ़ जाएगी इसके बढ़ने से चोरी चकारी लूटपाट बढ़ जाएगी ।
जो समाज का विकास होना था वो सब विकास चूर-चूर हो जाएगा । समाज मे अशिक्षा हो जाएगी पाप बढ जाएगा और हमें इस सबका पाप लगेगा।
राहुल: हाँ दादाजी युद्ध से बहुत नुकसान होता है, मैने पढ़ा भी है भी देखा भी है मूवी
में।
दादाजी: सही कहा, राहुल। अर्जुन ने भगवान कृष्ण से कहा कि हम पांडव तो द्रोपदी के साथ वन में जाकर भिक्षु की तरह रह जाएँ, पर ये पाप स्वीकार नहीं कर सकते।
राहुल: तो, दादाजी, अब अर्जुन युद्ध नहीं करेंगे? अर्जुन सही है दादाजी जब मैं
आपसे पूछ रहा था कि ये युद्ध गलत है ना, तब तो आपने कह दिया था गीता है स्वयं से
युद्ध, पर अब तो उसे स्वयं से नही अपने दादाजी से लड़ना है।
दादाजी: हाँ बेटा अर्जुन की दुविधा यह है कि वह स्वयं से युद्ध नहीं कर रहे, बल्कि अपने प्रियजन—अपने दादाजी, गुरु, मित्र और संबंधियों—से लड़ने की तैयारी नहीं कर पा रहे। ये घटनाएँ हमें सिखाती हैं कि कभी हमें स्वयं से और कभी बाहर युद्ध करना होता है। पर हमें पता होना चाहिए कि हम जो कर रहे हैं
उसका उद्देश्य क्या है क्या हमारे स्वार्थ के लिए है या स्वार्थ से दूर है।
अब देखना राहुल कल को अर्जुन क्या करता है तब तक के लिये
विश्राम करो।
राहुल:
(मुस्कुराते हुए) राहुल वीडियो में देखकर कहता है तो
दोस्तों कल हम जानेंगें क्या अर्जुन अपने फैसले पर अटल रहता है या युद्ध के लिये
तैयार होता है। तब तक के लिये शुभ रात्रि।
और दादाजी को भी शुभ रात्रि बोल कर राहुल चलता है अपने कमरे
की ओर।
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