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जीव का पृथ्वी पर आगमन जीव का 24तत्वो से निर्माण (श्रीमद भागवतम् )



      श्रीमद भागवतम् (SB 3.5) से जीव का पृथ्वी पर आगमन   

एक जीव बड़ा ही प्यारा था, वो ईश्वर का दुलारा था।

दुनिया उसकी निराली थी चारो तरफ खुशहाली थी।।

दूध दही की वहाँ नदिया थीं, सोने चाँदी की बगियाँ थीं।

उस बगिया में जाने कहाँ से तमों गुणी तितली एक आई।

भोले जीव पर ड़ाल दी अपनी तमो गुणी उसने परछाई ।।

तमों गुण को छूना था अब मिथ्या अहंकार को जगना था।

ईश्वर को अब तजना था और भौतिक जगत में पटकना था।।

काल के हाथों खाई पटकी, अब दिखा माया का चेहरा था।

माया देवी के सैनिको का चारो दिशाओं में डेरा था ।।

बोली माया कौन है रे ? तू ऐसे नहीं है जा सकता।

आत्मारूप में इस जगत में तू प्रवेश नहीं पा सकता।।

तू सुगंध सा यहाँ उड़ जायेगा चाहिये तुझको एक काया।

मिथ्या अहंकार ही मदद करेगा जो तुझको यहाँ है लाया।।

मिथ्या अहंकार भी सूक्ष्म बहुत उसको बहुत कुछ करना है।  

मेरी प्रकृति के तीन गुणों से आत्मा संग गुजरना है।।

पिछले जन्म के कर्मफल से तुझको ये गुण मिलना है।

इन तीन गुणों के अनुपात से ही तेरी प्रकृति को गढ़ना है।।

पूर्व जन्म के कर्म ही रचते, इस जन्म के भाग का लेखन।  

मेरा सतोगुण देगा तुझको, एक निर्मल सा पावन मन।।

इस मन से ही हे जीव! तू कर सकता ईश्वर का ध्यान।

पर मैने देखा है यहाँ आकर, सब करते मेरा ही गान।।

जिस दिन मुझे भूलकर तू ईश्वर का ध्यान लगायेगा।

सच कहती हूँ पुत्र मेरे ईश्वर का पुन: प्रेम तू पायेगा।।

मेरा रजोगुण देगा तुझको बुद्धि और दस इंद्रियाँ।

ये बुद्धि व इंद्रियाँ देंगी काम करने, की शक्तियाँ।।

सूक्ष्म तन बनाते तेरा मन बुद्धि और मिथ्या अहंकार।

बुद्धि ही अब देगी तुझको पंच तत्वों का स्थूल आकार।।

पहले बुद्धि बनाती निर्वात जो कहलाता हैं आकाश।

इस आकाश में होता है केवल ध्वनि का ही वास।।

आकाश के संग मिलकर बुद्धि वायु को बनाती है।

वायु ध्वनि और स्पर्श का ये दो अनुभव कराती है।।

अब ये तीनों मिलकर करते है अग्नि का निर्माण।

ध्वनि स्पर्श और रूप का अग्नि देती जीव को ज्ञान।।

जल बनाते आकाश वायु अग्नि और बुद्धि इसके बाद।

ध्वनि स्पर्श रूप के संग जल को मिल जाता है स्वाद।।

ये सब मिलकर अब ठोस बनाते जो कहलाती है पृथ्वी।

ध्वनि स्पर्श रूप स्वाद भी मिलता और मिलती गंध भी।।

आकाश वायु अग्नि जल व पृथ्वी से स्थूल घेरा बनता।

दसों इंद्रियो का अब इसमें देखो कैसा डेरा है लगता।।

पाँच इंद्रियाँ बतलायेंगी तुझको इस दुनिया का ज्ञान।

त्वचा, जीभ, नाक और दो आँखें और दो ही कान।।

कभी ज्ञान मिलेगा इनसे कभी मिलेगा तुझको भ्रम।

दोनो में भेद करके ही तुझको करना बस अपना करम।।

हाथ पावँ गुदा जनेनंद्री और वाणी हैं करम इंद्रियाँ।

इन कर्मो से ही पाप पुण्य की लिखी जाती हैं पत्रिया।।

इंद्रियों को विषय देगा मेरा नटखट तमोगुण अलबेला।

स्पर्श,स्वाद,गंध, रूप और ध्वनि का ही है सब खेला।।

ये विषय ही इंद्रियों में भोग की इच्छाओं को जगाते हैं।

कभी अच्छे और कभी बुरे कर्म करने को उकसाते हैं।।

इस भौतिक जगत में कर्म करना ही तेरी प्रकृति है।

बुद्धि पूर्वक सोचसमझकर जीना ही तेरी नियति है।।

तेरा लक्ष्य याद रखना वापस तुझे है घर जाना।

मेरी माया के चक्कर में पुत्र तू नहीं फँस जाना।।

शालिनी गर्ग

 

 

 

 

 

 


 

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