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Showing posts from September, 2020

अध्याय -5 क्रोध, इच्छा, भय, से मुक्ति

  अध्याय -5 कृष्ण भावना भावित कर्म    क्रोध ,  इच्छा ,  भय ,  से मुक्ति अर्जुन बोले , कृष्ण आपने , पहले कहा कर्म करो त्याग। अब कहते हो भक्ति पूर्वक , करो कर्म का अभ्यास।। कृपया करके केवल मुझको , निश्चित मार्ग बतलाइए । जो मेरे लिए कल्याणकारी हो , केवल वही समझाइए।। भगवान बोले , हे अर्जुन! मुक्ति के लिए दोनों हैं उत्तम। पर श्रेष्ठ तो कर्मयोग है , क्योंकि ये है अधिक सुगम।। कर्मफलों से ना करते घृणा , ना कोई आकांक्षा रखते हैं। कर्मयोगी ही सन्यासी है , भवबंधन से मुक्ति पाते हैं।। अज्ञानी ही कर्मयोग व ज्ञानयोग में अंतर कर देते हैं। ज्ञानयोग कर्मयोग दोनो से , परमधाम को पा सकते हैं।। दोनों का फल एक देखे जो , वही वास्तविक देखते हैं। कर्म बिना सन्यासी बनकर , सुखी नहीं रह सकते है।। जो जीतकर इंद्री , मन को , अपने काबू में कर लेते है। सबके प्रिय बनते हैं और आत्मा शुद्ध कर लेते है।। जागते , सोते , चलते , उठते , खाते , पीते और बोलते। मैं कुछ नहीं करता हूँ , ये सब काम इंद्रियों के होते।। जो यह सत्य जानता है , वो दिव्य ज्ञान का ज्ञाता है। ...

शिक्षक दिवस पर कविता

  हर शिक्षक में कुछ ना कुछ खास होता है हर किसी का कभी ना कभी एहसास होता है कोई ज्ञान बढ़ाता है, कोई गुण निखारता है, कोई आपकी कला को पहचान देता है क्योंकि हर शिक्षक कुछ खास होता है हर किसी का कभी ना कभी एहसास होता है कोई प्रेम सिखाता है, कोई क्रोध दिखाता है   कोई हासपरिहास से जीना बताता है क्योंकि हर शिक्षक कुछ खास होता है हर किसी का कभी ना कभी एहसास होता है कोई चपत लगाता है, कोई धमकी देता है   कोई क्लास से सीधा बाहर कर देता है क्योंकि हर शिक्षक कुछ खास होता है हर किसी का कभी ना कभी एहसास होता है