गीता की महिमा
वैदिक ज्ञान का सार है गीता,
जीवन जीने का है ये तरीका ।।
भगवान के मुख से है कही हुई,
यह औषधि स्वयं कृष्ण की दी हुई।।
पहले भी कही थी यह सूर्य देव को,
वापिस दोहरा रहे हैं कृष्ण अर्जुन को।।
पहले तो अर्जुन ने कृष्ण को गुरु स्वीकारा,
जब ज्ञान हुआ तो उन्हें भगवान पुकारा।।
पर पूछता रहा प्रश्न अंत तक वो डटकर,
संशय का बादल जब तक उड न गया छट कर।।
अर्जुन का ज्ञान पाना तो एक बहाना था,
वास्तव में तो उन्हे हमें ही सब बताना था।।
अगर जरा सी श्रद्धा है तो सुनना जरूर,
गीता का ये वाणी अमृत दिल से पीना जरूर ।।
गीता का मकसद हमसे पहचान है कराना,
हमारा सत्य स्वरूप क्या है हमें यह बताना।।
हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है?
हममें और पशुओं में अंतर क्या है ?
वह परमपिता है हमारे, उनसे पुराना रिश्ता है,
एकजन्म का नहीं जन्मजन्मों का यह नाता है।।
हम भूल गए है जो संबंध वो फिर से बनाना है,
अपने मन बुद्धि को केवल कृष्ण में ही लगाना है।।
कृष्णा नाम का ही सदास्मरण करके,
कर्मों के फल को उन्हें अर्पित करके,
उनके चरण कमलों मे ध्यान लगाना है
जीवन मरण के चक्र से मुक्ति पाना है
चाहे कर्म कर कर, चाहे ध्यान लगाकर,
चाहे ज्ञान पाकर, चाहे मेरा भक्त बनकर
मैं तुझको मिल जाऊँगा प्यारे बस तू,
मुझे प्रेम कर,मुझे प्रेम कर,बस मुझेप्रेम कर,
गीता रुपी गंगा जल में डुबकी लगा ले
पापों से क्या इस भवसागर से मुक्ति पा ले
सफल हो जाएगा यह तेरा मनुष्य जीवन ,
गीता में स्वयं भगवान का है यह वचन ।।
-शालिनी गर्ग
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