कोरोना पर दो कविताएँ
चलो ना इस कोरोनो के सीज़न में ,
हम तुम मोबाइल मोबाइल खेंलें ना
तुम इस सोफे पर बैठो मैं उस सोफे पर बैठूँ
मुझे भेजकर इमोजी केवल दूर से प्यार करना
न तुम्हे जिम जाना न मुझे बच्चों को पढाना
न मैं कुछ करूँ न तुम कछ करना
बस मोबाइल हाथ में लेकर दोनो
पोस्ट करेंगें कोरोना कोरोना।
कोरोना को शायद प्रकृति ने ही बुलाया है,
अपना संदेश हमें इस के द्वारा समझाया है ।
अंहकारवश अपने को समझ बैठा था सर्वशक्तिमान ,
उनके लिए अब ख़ौफ़ व डर साथ में भिजवाया हैं,
छिप गए थे जो परिंदे कभी मानव के डर से,
आज वो मानव जाली से परिंदों की उड़ान देख रहा है ।
खो गईं थी जो सुबह व शाम इस भागती ज़िंदगी की,
वो भी अब वापस धीमी रफ़्तार पर आ रहीं हैं ।
प्रदूषण से भरी सडको पर अब केवल
पंछियों की मधूर गूँजन गूँज रही है
क्यों भूल गए थे हम शुक्रिया अदा करना
प्रकृति को उसके इन बेमिसाल उपहारों का
पर समझा दिया उसने हर किसी को आज कि गर
हम उसे सताएँगे तो वो भी एक दिन हमें रूलाएँगी ।
-शालिनी गर्ग
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