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वो भी क्या ज़माना था - poem recited by RJ on Radio Olive

वो भी क्या ज़माना था वो भी क्या ज़माना था जब हवाईजहाज उडाया करते थे, पानी में नाव तैराते थे और साईकिल दौडाया करते थे। वो भी क्या ज़माना था जब हवाईजहाज उडाया करते थे, सपनो को बंद कर आँखों में ,चाँद से बातें करते थे। फोल्डिंग पलंग पर तारों संग रात सजाया करते थे। वो भी क्या ज़माना था जब हवाईजहाज उडाया करते थे, जेबों में मूँगफली, उँगली में फ्रायमस पहना करते थे आइसक्रीम,पोपकोर्न के लिए सडकों पर दौड़ लगाया करते थे। वो भी क्या ज़माना था जब हवाईजहाज उडाया करते थे, दादी के संग अंगीठी पर भुट्टे भूना करते थे, बीज निखोला करते थे और जवे तुड़वाया करते थे । सिल पर चटनी और रई से मक्खन बिलोया करते थे, वो भी क्या ज़माना था जब हवाईजहाज उडाया करते थे, अपनी पोकेटमनी से गानो की कैसेट लाया करते थे, दोस्तो के संग फिर कैसेट की अदला बदली करते थे, जब कैसेट अटक जाती तो पेंसिल से घुमाया करते थे। वो भी क्या ज़माना था जब हवाईजहाज उडाया करते थे, गरमी में बोतल और कूलर में, पानी भरते रहते थे, सरदी में टोपे और जैकेट पहन, बाइक पर सैर करते थे, और रिमझिम रिमझिम बारिश होते ही पकौडे खाया करते थे। वो भी क्या ज़माना था जब हवाई...