आतंकवाद कोई मुझे बता दे इन आतंकिओं की अभिलाषा, क्या पहचान है इनकी, है कौन सी इनकी भाषा। दिखने में तो लगते हैं ये सब हूबहू इंसान, पर जानवरों से भी कम होता है इनमें ज्ञान। न दिल की है ये सुनते, न दिमाग को चलाते, बस बनकर शैतान ,कत्लेआम है मचाते। काश एक बार इन्हे कोई तो ये समझाए, मासूमों की चीखों का दर्द महसूस कराये। प्यार का सबक कोई तो इन्हे पढाए, फूल और काँटे में अन्तर करना सिखाए। नफरत का पाठ जो हरदम पढाते हैं इन्हे अपना जिसे समझते हैं ये,वही डसते है इन्हे। नफरत से भी कभी क्या कोई जीता है यहाँ, इंसानियत से बडा कोई मजहब नहीं है यहाँ। काश ये सब इन आतंकियों की समझ में आ जाता, तो ये संसार इस आतंकी आग में यूं न सुलग पाता। -शालिनी गर्ग
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