हिन्दी की पाठशाला हिन्दी अध्यापिका के लिए इश्तहार था आया, हमने भी अपना हौसला बढाया और, साक्षात्कार के लिए कदम बढाया । उन्हे भी हमारा अंदाज पसंद आया, और अगले हफ्ते से ही हिन्दी पढाने का हुक्म फरमाया । फिर क्या था हमने भी अपनी सारी जुगत लगाई, हिन्दी सिखाने की सारी तरकीब अपनाई। पर हाय री किस्मत ! जब हिन्दी सिखाने की यहाँ कोई किताब न पाई, तब हमने अपने प्यारे गूगल को आवाज लगाई। खैर पाठ बनाए हमने और शुरू हो गई पाठशाला, जिसमें थे कम्पनी के अफसर आला आला। पहले दिन का पाठ सभी को बहुत भाया, सभी ने अपनी पसंद का वाक्य बतलाया। किसी को आप कैसे हैं ? मै अच्छा हूँ, बहुत भाया, तो किसी को अच्छा बच्चा का रिदिम रास आया। एक मोहतरमा को तो अच्छा चलते हैं का जुमला बहुत भाया। और उन्होने ये जाकर अपनी कार्य स्थली में दोहराया। कहाँ मिलोगी बसंती ?पलट कर जवाब ये आया। कुछ समझ न पाई वो झट नोट डाउन किया और आकर हमें बतलाया। एक दिन पाठशाला में हमने समझाया, हिन्दी में बडो को बहुत इज्जत देते हैं इसलिए उन्हे एकवचन में नहीं बहुवचन में बोलते हैं। जैसे माई फादर को मेरा पिता जी नहीं मेरे पिताजी बोलेंगे। चलिए इस पर अब इस पर एक न...
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